
नई दिल्ली, 23 जुलाई 2025: राष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है। कांग्रेस नेता और पूर्व सांसद डॉ. उदित राज ने इस घटनाक्रम को ‘जाट फैक्टर’ से जोड़ते हुए बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि भाजपा अब जाट नेताओं पर भरोसा नहीं करती, और धनखड़ का इस्तीफा इसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।पूर्व भाजपा सांसद रहे डॉ. उदित राज ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा, “धनखड़ जी सत्यपाल मलिक के बाद दूसरे बड़े जाट नेता हैं जिनका सफाया बीजेपी ने किया। शायद बीजेपी को जाट नेताओं पर विश्वास नहीं है। हरियाणा में नॉन-जाट फार्मूला हिट रहा, जबकि पहले माना जाता था कि वहां सिर्फ जाट ही सीएम बन सकता है। जाटों का वोट तो चाहिए, लेकिन नेता नहीं।”धनखड़ ने अपने इस्तीफे की वजह स्वास्थ्य कारणों को बताया है, लेकिन कांग्रेस समेत विपक्ष के कई नेताओं का मानना है कि इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक वजह हो सकती है। उल्लेखनीय है कि सत्यपाल मलिक भी कृषि आंदोलन और केंद्र की नीतियों को लेकर मोदी सरकार से सार्वजनिक रूप से टकराव के बाद हाशिए पर चले गए थे।
राज्यसभा में भूमिका पर विपक्ष की आलोचना
उपराष्ट्रपति रहते हुए जगदीप धनखड़ पर विपक्ष कई बार पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने के आरोप लगाता रहा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने राज्यसभा में धनखड़ की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे। रमेश ने यहां तक कहा था कि सभापति को ‘अंपायर’ की तरह तटस्थ रहना चाहिए, लेकिन वह भाजपा की लाइन पर काम कर रहे हैं।ऐसे में विपक्षी नेताओं का अचानक उनके प्रति सहानुभूति जताना और उन्हें ‘किसानपुत्र’ कहकर सम्मानजनक विदाई की मांग करना, सियासी समीकरणों में बदलाव का संकेत माना जा रहा है। कई विपक्षी सांसदों ने उनसे इस्तीफे पर पुनर्विचार की अपील भी की है।
बीजेपी की रणनीति पर उठे सवाल
उदित राज के बयान ने यह बहस भी छेड़ दी है कि क्या भाजपा सच में जाट नेतृत्व से दूरी बना रही है? हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाकों में जाट समुदाय का वोट बैंक अहम है, लेकिन नेतृत्व की भूमिका में जाट चेहरे कम होते जा रहे हैं।अब देखना यह होगा कि भाजपा इस मुद्दे पर क्या प्रतिक्रिया देती है और क्या धनखड़ के इस्तीफे से जुड़ी सियासी परतें आने वाले दिनों में और खुलेंगी।