
नई दिल्ली । 12 जुलाई 2025, शब्दरंग समाचार :
क्या एकसाथ चुनावों के लिए संविधान संशोधन जरूरी है?
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ वकील ई.एम.एस. नचियाप्पन ने संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष पेश होकर स्पष्ट किया कि ‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन जरूरी नहीं है। उनके अनुसार, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act) में संशोधन से यह कार्य संभव है।
नचियाप्पन का तर्क: जन इच्छा नई लोकसभा में परिलक्षित होती है
उन्होंने यह तर्क दिया कि:
- नई लोकसभा जनता की नई इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करती है।
- पिछली लोकसभा के फैसलों को नई संसद पर थोपना अनुचित है।
- संविधान में कहीं भी एकसाथ या चरणबद्ध चुनावों का उल्लेख नहीं है, इसलिए उसके संशोधन की अनिवार्यता नहीं बनती।
संविधान नहीं, चुनाव आयोग को सशक्त करें
नचियाप्पन ने कहा कि संविधान ने चुनावों से संबंधित अधिकार चुनाव आयोग को दिए हैं। इसलिए यदि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 14 और 15 में संशोधन किया जाए, तो आयोग को और लचीलापन मिल सकता है।
प्रस्तावित बदलाव क्या होंगे?
उनके अनुसार, जनप्रतिनिधित्व कानून में निम्नलिखित संशोधन किए जा सकते हैं:
- विधानसभा भंग होने के 6 महीने बाद तक भी चुनाव कराए जा सकें।
- लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तारीखों को समन्वित किया जा सके।
- इससे एक देश-एक चुनाव को चरणबद्ध तरीके से लागू करना संभव होगा।
राजनीतिक समर्थन और व्यावहारिकता
नचियाप्पन ने सुझाव दिया कि:
- भाजपा और उसके सहयोगी दल दो-तिहाई राज्यों में सत्ता में हैं।
- अगर ये दल सहमति से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराएं, तो यह एक बड़ा कदम होगा।
- इससे कानूनी विवादों से बचा जा सकेगा और प्रक्रिया धीरे-धीरे लागू की जा सकेगी।
संविधान संशोधन विधेयक पर जताई आपत्ति
उन्होंने समिति के सामने संविधान संशोधन विधेयक में प्रस्तावित उस प्रावधान पर भी आपत्ति जताई, जिसमें राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी कर पहली लोकसभा बैठक से विधेयक को लागू मानने की बात कही गई थी। उनके अनुसार, यह विधायी जनादेश की सीमाओं से बाहर जाता है।