
रांची । 30 जून 2025, शब्दरंग समाचार:
झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह गांव में हूल क्रांति दिवस 2025 पर पुलिस और आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई। घटना में कई ग्रामीण और पुलिसकर्मी घायल हो गए। प्रशासनिक अनुमति के बिना कार्यक्रम करने पर यह टकराव हुआ।
बिना अनुमति कार्यक्रम को लेकर विवाद
सिदो-कान्हू मुर्मू हूल फाउंडेशन ने कार्यक्रम की अनुमति मांगी थी, लेकिन प्रशासन ने अनुमति देने से इनकार कर दिया। बावजूद इसके, सोमवार को कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।
जब पुलिस ने टेंट हटाने का प्रयास किया, तब स्थिति बेकाबू हो गई।
पथराव, तीरबाज़ी और पुलिस का लाठीचार्ज
स्थिति बिगड़ते ही:
- आदिवासियों ने पुलिस पर पथराव और तीर चलाए
- पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया
- तीन पुलिसकर्मियों को अस्पताल में भर्ती कराया गया
- इलाके में तनाव बना हुआ है और भारी सुरक्षा बल तैनात है
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: भाजपा ने सरकार को घेरा
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने घटना की तीखी आलोचना की। उन्होंने X (ट्विटर) पर वीडियो साझा करते हुए लिखा: “यह घटना अंग्रेजी हुकूमत के दमनकारी रवैये की याद दिलाती है। सरकार नहीं चाहती कि आदिवासी समाज अपनी पहचान और अधिकारों के लिए आवाज उठाए।”
भाजपा ने इसे हेमंत सोरेन सरकार की नाकामी और आदिवासी विरोधी रवैये का उदाहरण बताया है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: हूल क्रांति दिवस क्या है?
हूल क्रांति दिवस की शुरुआत 1855 में हुई थी जब सिद्धो-कान्हू मुर्मू ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष छेड़ा था। यह झारखंड और संथाल आदिवासियों के गौरव और बलिदान का प्रतीक है।
हर वर्ष भोगनाडीह में इसका आयोजन होता है, जो आदिवासी अस्मिता और एकता का प्रदर्शन बन चुका है।