महाराष्ट्र । 18 जून 2025, शब्दरंग समाचार:
वन्यजीव संरक्षण और जंगलों से जुड़ी संवेदनशीलता को आमजन तक पहुंचाने वाले पद्मश्री सम्मानित पर्यावरणविद् मारुति चितमपल्ली का 93 वर्ष की आयु में बुधवार को निधन हो गया। उन्होंने सोलापुर में अंतिम सांस ली। उनकी पहचान एक वन अधिकारी, लेखक और ‘अरण्य ऋषि’ के रूप में थी।
वन और साहित्य का संगम
चितमपल्ली जी ने विदर्भ क्षेत्र के जंगलों में कार्य करते हुए वन संरक्षण और लेखन को एक साथ साधा। उनके साहित्य में वन्यजीवन की बारीकियां, प्रकृति के साथ सहअस्तित्व, और पर्यावरणीय चेतना का जीवंत चित्रण देखने को मिलता है।
पद्मश्री सम्मान और जीवन भर की सेवा
- अप्रैल 2025 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
- उन्होंने 1958 में कोयंबटूर फॉरेस्ट कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की।
- महाराष्ट्र के वन विभाग में दीर्घकालीन सेवा दी।
- उन्हें महाराष्ट्र को जंगल पढ़ाने वाला पहला शिक्षक भी कहा जाता है। प्रेरणा बचपन से: मां से मिला प्रकृति प्रेम
चितमपल्ली ने कई बार बताया कि उनका प्रकृति से जुड़ाव मां के जंगल प्रेम से प्रेरित था। यह जुड़ाव ही बाद में उन्हें जंगलों का संरक्षक और पर्यावरण चेतना का वाहक बना गया।
लेखन में योगदान
- उन्होंने कई पुस्तकें और लेख लिखे जो पर्यावरणीय शिक्षा और चेतना को बढ़ावा देने वाले रहे।
- उनके कार्यों का उपयोग विद्यालयों और पर्यावरणीय पाठ्यक्रमों में भी किया गया है।






