यह ब्रह्मांड बहुत विशाल है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड में लाखों-करोड़ों सौर मंडल हैं, जिसमें हमारा सौर मंडल, यानी आकाशगंगा अथवा मिल्की वे, एक बूँद के समान है, और उसी आकाशगंगा में हमारी पृथ्वी भी एक बूँद के समान है। सोचिए, इतने बड़े कायनात में हमारी पृथ्वी तुलनात्मक रूप से चींटी की आँख से भी छोटी है, किन्तु यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सबसे अद्भुत और अनोखी जगह है। यह विशेषता उसे जल के कारण मिली है, क्योंकि जल है तो जीवन है। जल ने इस ग्रह को जीवन से समृद्ध किया है। हमारे वैज्ञानिक जब अंतरिक्ष में जीवन की खोज करते हैं, तो विभिन्न ग्रहों पर पानी की खोज करते हैं, क्योंकि यदि पानी मिल गया, तो जीवन भी मिल ही जाएगा; इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है। विज्ञान कथाओं को छोड़ दें, तो अब तक किसी अन्य ग्रह या उपग्रह पर जीवन की संभावना नहीं मिली है, क्योंकि कहीं भी पानी की निशानी नहीं मिली है।
सोचिए, जिस अमृत की कल्पना वेदों और पुराणों में की गई है, कहीं वह पानी ही तो नहीं है? अगर इसे न भी मानें, तो भी दूध और खून की तरह अमृत का भी अधिकांश हिस्सा पानी ही होगा। समस्या यह है कि सर्वसुलभ को हम सम्मान नहीं देते। पानी सबसे दुर्लभ, सबसे बहुमूल्य है, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती, और हम उसी जल का निरादर कर रहे हैं। जीवन की सबसे कीमती वस्तु की यदि हम मूल्य निर्धारण करें, तो उस पानी की कीमत सम्पूर्ण विश्व की कुल जीडीपी से हजारों गुना ज्यादा होगी।
जो पानी हम व्यर्थ बहा देते हैं, उसे पृथ्वी का खून समझिए। जिस तरह आपका खून अधिक बह जाए, तो आप जीवित नहीं रह सकते, उसी तरह अगर अधिक पानी पृथ्वी के गर्भ से निकल कर बह जाएगा, तो यह पृथ्वी भी मर जाएगी। रक्तनाश से तो केवल एक व्यक्ति की मौत होगी, किन्तु जलनाश से हर तरह का जीवन समाप्त हो जाएगा।
“पानी की कीमत तुम क्या जानो, रमेश बाबू।
पानी के बिना न कल था, न कल हो सकता है।”
पानी सिर्फ हमारे उपयोग के लिए नहीं है, यह धरोहर है, हमारे पास आने वाली नस्लों के लिए; पर हम अमानत में खयानत कर रहे हैं। हमें पृथ्वी का पानी बचाने के लिए अपनी आँखों का पानी बचाना होगा। जब आँख का पानी हमारा लालच सोख लेगा, तो हम पृथ्वी के पानी को किसी भी दशा में नहीं बचा पाएंगे।
“जल अमृत की बूँद है, जल जीवन का सार।
हम करते जल नष्ट कर, खुद अपना संहार।।”
हर धर्म में जल के महत्व को गाया गया है। मुहम्मद साहब ने भी कुरान के द्वारा बताया कि जन्नत में बगीचे होंगे और उनके नीचे पानी होगा। अतः, आप हिंदू हैं, तो भगवान के नाम पर; मुसलमान हैं, तो खुदा के नाम पर; इंसान हैं, तो इंसानियत के नाम पर; और खुदगर्ज हैं, तो खुद के नाम पर पानी बचाइए।