जिंदगी एक ब्लैक होल तो नहीं
जो सोते हुए, किसी खास पल में
मिचमिचाते पलकों के साथ
धक से खूब ऊंचे धड़कनों को थामें
जग जाते हैं …
दूर तलक सब कुछ थमा है
नहीं समझ आ रहा कि हुआ क्या
तेज धड़कनों के सच को
जागृत करते हुए
जैसे ही फिर से भिंची पलकें
…आ जा न रे निंदिया
आह, ऐसे भी कोई सोता है क्या
उठ कर बैठ गया
जिंदगी ब्लैक कोबरा के फन पर
लगी नागमणि सा
लगा भाग न जाये कहीं ये सरीसृप
उफ, कैसे थाम लूं
स्वयं को, जिंदगी को, साँसों को
सब ब्लैक होल में भागे जा रहे
अंतहीन डर को अब
अपने बैक पैक में बांधे
खिड़की से निहार रहा
स्ट्रीट लाइट की पीली लाइटें
नहीं जगाऊंगा किसी को
पर बेचैनियों को कब तलक
रोक पाऊंगा
ऐसे रात दर रात
जो कभी भी छटपटाते हुए
हुक से ठोक देती है कील
अलिंद-निलय के तारों के बीच
शायद स्वर्गीय बनने की चेष्टा
होती है पूरी
कुछ ऐसे ही।
…शायद!
उम्र लैम्प पोस्ट के भांति
टँग जाएगी, तेज धड़कन को
किसी पल बेहद तेज से
खटाक से स्थिर करके।
हां, मुझमें ऐसा भी कुछ नहीं कि
रोशनी छोड़कर जाऊंगा
पर जाना पड़ेगा किसी दिन।
- मुकेश