भारत के सामने लड़ाकू विमान चुनने की चुनौती: सुखोई एसयू-57 बनाम एफ-35

शब्दरंग समाचार: भारत की वायुसेना के आधुनिकीकरण की जरूरत अब किसी से छिपी नहीं है। चीन और पाकिस्तान की बढ़ती सैन्य ताकत के बीच भारत को अपनी वायुसेना को मजबूत और आधुनिक बनाना अनिवार्य हो गया है। इसी संदर्भ में भारत के सामने दो बड़े विकल्प उभर रहे हैं — अमेरिकी एफ-35 और रूसी सुखोई एसयू-57। दोनों ही “फिफ्थ जनरेशन” के अत्याधुनिक स्टेल्थ फाइटर जेट हैं, लेकिन इनकी खूबियों, कीमत और रणनीतिक असर को देखते हुए भारत के लिए फैसला लेना आसान नहीं है।

एफ-35: आधुनिक तकनीक लेकिन महंगी कीमत

अमेरिका का एफ-35 दुनिया के सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों में गिना जाता है। यह फिफ्थ जनरेशन मल्टी-रोल फाइटर जेट है, जो स्टेल्थ टेक्नोलॉजी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और डेटा शेयरिंग सिस्टम से लैस है। इसकी स्टेल्थ क्षमता इसे रडार की पकड़ में आने से बचाती है, जो इसे युद्ध के दौरान एक बड़ा रणनीतिक लाभ देती है।हालांकि, इसकी कीमत लगभग 8 करोड़ डॉलर (670 करोड़ रुपये) प्रति यूनिट है, जो इसे दुनिया के सबसे महंगे लड़ाकू विमानों में से एक बनाती है। इसके अलावा, रखरखाव और ऑपरेशनल कॉस्ट भी काफी ज्यादा है। विशेषज्ञों के अनुसार, एफ-35 की उपलब्धता भी एक चिंता का विषय है — अमेरिकी वायुसेना में भी इसकी उपलब्धता दर केवल 51% है।

एफ-35 के पक्ष में:

  • अत्याधुनिक स्टेल्थ टेक्नोलॉजी
  • एडवांस्ड सेंसर और डेटा लिंकिंग सिस्टम
  • मल्टी-रोल कैपेसिटी (एयर-टू-एयर और एयर-टू-ग्राउंड दोनों)

एफ-35 के खिलाफ:

  • अत्यधिक महंगा (खरीद और रखरखाव दोनों)
  • को-प्रोडक्शन और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की कोई संभावना नहीं
  • अमेरिका की सख्त एंड-यूज़र मॉनिटरिंग नीति

सुखोई एसयू-57: सस्ती लेकिन विवादित तकनीक

रूस का सुखोई एसयू-57 भी एक फिफ्थ जनरेशन स्टेल्थ फाइटर जेट है। यह विमान कम कीमत पर उच्च प्रदर्शन का दावा करता है। भारत और रूस के रक्षा संबंध लंबे समय से मज़बूत रहे हैं, और सुखोई विमान भारतीय वायुसेना की रीढ़ रहे हैं।

हालांकि, एसयू-57 के विकास में देरी और तकनीकी खामियों के कारण भारत ने 2018 में इस प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिया था। कई विशेषज्ञ इसकी स्टेल्थ क्षमता और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को अमेरिकी एफ-35 से कमजोर मानते हैं।

एसयू-57 के पक्ष में:

  • अपेक्षाकृत कम कीमत (लगभग 2-3 करोड़ डॉलर प्रति यूनिट)
  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और को-प्रोडक्शन की संभावना
  • पहले से रूसी सिस्टम के साथ भारतीय वायुसेना की अनुकूलता

एसयू-57 के खिलाफ:

  • स्टेल्थ और अवन्ट-गार्डे तकनीक पर सवाल
  • 2018 में भारत द्वारा प्रोजेक्ट छोड़ने की वजहें (तकनीकी और डिजाइन विवाद)
  • लिमिटेड ऑपरेशनल हिस्ट्री

स्वदेशी विकल्प:

तेजस और एएमसीएभारत अपने एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) प्रोजेक्ट पर भी काम कर रहा है, जो देश का पहला स्वदेशी फिफ्थ जनरेशन फाइटर जेट होगा। हालांकि इसके आने में अभी 8-10 साल लग सकते हैं। इसके अलावा, तेजस मार्क 1ए और मार्क 2 जैसे हल्के लड़ाकू विमानों का उत्पादन और विस्तार भी जारी है।

भारत की रणनीतिक दुविधा

भारत के लिए यह सिर्फ तकनीक का नहीं, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता का भी सवाल है। अमेरिका से एफ-35 खरीदने का मतलब होगा अमेरिकी निगरानी और शर्तों को स्वीकार करना। वहीं, रूस के साथ एसयू-57 पर साझेदारी भारत को ज्यादा स्वतंत्रता दे सकती है, लेकिन इसकी तकनीकी सीमाएं चिंता का विषय हैं।

क्या भारत को एफ-35 लेना चाहिए?

अगर भारत फिफ्थ जनरेशन स्टेल्थ क्षमता को तुरंत हासिल करना चाहता है, तो एफ-35 एक मजबूत विकल्प है।लेकिन कीमत, रखरखाव और अमेरिकी शर्तें इसे एक कमजोर रणनीतिक सौदा बना सकती हैं।

क्या भारत को एसयू-57 लेना चाहिए?

सस्ती कीमत और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की संभावना इसे एक आर्थिक रूप से व्यवहारिक विकल्प बनाती है।लेकिन इसकी तकनीकी खामियां और भारत द्वारा पहले इसे छोड़ना एक बड़ा लाल झंडा है।

फैसले का रास्ता: स्वदेशी निर्माण पर जोर

भारत को तेजस और एएमसीए जैसे स्वदेशी प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देनी चाहिए। 114 मल्टी-रोल फाइटर जेट्स की योजना के तहत विदेशी कंपनियों के साथ को-प्रोडक्शन और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर जोर देना भी जरूरी है।

एफ-35 तकनीकी रूप से बेहतर है, लेकिन महंगा और शर्तों से बंधा है। एसयू-57 सस्ता है, लेकिन तकनीकी सीमाओं और भरोसे पर सवाल हैं। जब तक एएमसीए तैयार नहीं होता, भारत को राफेल की संख्या बढ़ाने और तेजस के उत्पादन में तेजी लाने की रणनीति पर ध्यान देना चाहिए।

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