कथक को नई लय देने वाली मशहूर नृत्यांगना कुमुदिनी लाखिया का निधन

Kumudini Lakhiya

अहमदाबाद, शब्दरंग समाचार: 

भारतीय शास्त्रीय नृत्य को एक नया आयाम देने वाली प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना कुमुदिनी लाखिया का 12 अप्रैल को निधन हो गया। वे 93 वर्ष की थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि “भारतीय शास्त्रीय नृत्य के प्रति उनका जुनून उनके उल्लेखनीय कार्यों में झलकता था।”

कथक में नवाचार की प्रतीक

कुमुदिनी लाखिया ने कथक की पारंपरिक सीमाओं को चुनौती देते हुए उसे आधुनिक मंच की आवश्यकताओं के अनुसार ढाला। उन्होंने नृत्य की प्रस्तुति को एक सीमित स्थान से निकालकर पूरे मंच पर फैलाया और कथक को ‘प्रोसेनियम आर्ट’ का विस्तार दिया। उनका दृष्टिकोण पारंपरिक गुरुकुल प्रणाली से अलग था—वे संवाद, प्रयोग और मौलिकता में विश्वास रखती थीं।

कदंब’ की स्थापना और शिक्षण शैली

अहमदाबाद में उन्होंने ‘कदंब’ नृत्य अकादमी की स्थापना की, जो आज कथक की प्रमुख संस्थाओं में से एक है। उनके शिष्यों में प्रसिद्ध नृत्यदंपति इशिरा पारिख और मौलिक शाह भी शामिल हैं। इशिरा पारिख कहती हैं, “कुमुदिनीबेन के साथ सीखना केवल नृत्य सीखना नहीं था, बल्कि जीवन को एक कलात्मक दृष्टि से देखना भी था।” उनके अनुसार, कुमुदिनीबेन की सौंदर्य दृष्टि न केवल नृत्य, बल्कि जीवन के हर पहलू में झलकती थी।

बहुआयामी जीवन यात्रा

कुमुदिनी लाखिया ने घुड़सवारी सीखी, कृषि में स्नातक की डिग्री ली और लंदन जाकर पश्चिमी नृत्य शैलियों जैसे बैले का अध्ययन किया। वहीं से उन्होंने कथक में आधुनिक तत्वों को जोड़ने की प्रेरणा ली। भारत लौटने के बाद उन्होंने पंडित शंभू महाराज और सुंदर प्रसाद जैसे गुरुओं से प्रशिक्षण लिया।

उमराव जान की कोरियोग्राफ़र

सिनेमा प्रेमियों के लिए वे फिल्म ‘उमराव जान’ की कोरियोग्राफ़ी के लिए जानी जाती हैं, जिसमें रेखा मुख्य भूमिका में थीं। इस फिल्म की कोरियोग्राफी ने भी कथक के सौंदर्य और भाव को एक नई ऊँचाई दी।

सम्मान और विरासत

भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्य में मौलिकता, समकालीन दृष्टिकोण और सौंदर्यबोध को स्थापित किया। वे केवल एक नृत्यांगना नहीं थीं, बल्कि एक विचार थीं—जो परंपरा को जीवित रखते हुए उसमें नवीनता भरने में विश्वास रखती थीं।

उनकी शिष्या इशिरा पारिख कहती हैं, “कुमुदिनीबेन ने हमें केवल कथक नहीं सिखाया, बल्कि यह भी सिखाया कि एक कलाकार कैसे सोचता है, देखता है और रचता है।”

कुमुदिनी लाखिया का जाना भारतीय शास्त्रीय नृत्य जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनका योगदान और विचार सदैव जीवित रहेंगे

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