
शब्दरंग समाचार : हाल ही में मीडिया में “ऑपरेशन सिंदूर” (Operation Sindoor) नाम सामने आया, जो सेना द्वारा जम्मू-कश्मीर में किए जा रहे एक सुरक्षा अभियान का कोडनेम (Code Name) है। इस नाम पर कुछ संगठनों और लोगों ने आपत्ति जताई है, उनका कहना है कि सिंदूर हिंदू स्त्री की मांग का प्रतीक है, और इसका सैन्य अभियानों में उपयोग एक धार्मिक भाव के साथ खिलवाड़ या उसे युद्ध से जोड़ने जैसा लगता है। इस पर सोचने से पहले हमें दो बातें स्पष्ट करनी होंगी।
1. कोडनेम का चयन क्यों होता है?
सेना या पुलिस द्वारा किसी भी ऑपरेशन का नाम रखने की एक पारंपरिक प्रक्रिया होती है। यह नाम प्रायः प्रतीकात्मक, यादगार, और ऑपरेशन के उद्देश्य या भाव को दर्शाने वाला होता है। दुनिया भर की सेनाएं अपने अभियानों को नाम देती हैं — जैसे ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म, ऑपरेशन ब्लू स्टार, ऑपरेशन विजय आदि। इनमें धर्म या संस्कृति का कोई सीधा संदर्भ नहीं होता, बल्कि ये नाम केवल एक पहचान (identifier) की तरह काम करते हैं।
2. “सिंदूर” का अर्थ और व्यापक संदर्भ
सिंदूर केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में शक्ति, सुरक्षा, और मंगल का भी प्रतीक माना जाता है। देवी दुर्गा को भी “सिंदूर” अर्पित किया जाता है। ऐसे में सेना ने इस नाम को शक्ति और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में चुना हो सकता है, न कि किसी धर्म विशेष का प्रचार करने के लिए।
आपत्तियों की जरूरत है या नहीं?
आज जब कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके में आतंकी गतिविधियों से निपटना एक बड़ी चुनौती है, तब ऑपरेशन के नाम पर विवाद खड़ा करना वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाने जैसा हो सकता है। मुख्य बात यह है कि ऑपरेशन का उद्देश्य निर्दोष नागरिकों की रक्षा, आतंकवाद का सफाया, और शांति स्थापना है। नाम चाहे जो भी रखा जाए, उसकी सफलता और नैतिकता ज्यादा महत्वपूर्ण है।
क्या इसपर संवेदनशीलता जरूरी है?
हां, हर सार्वजनिक प्रक्रिया में संवेदनशीलता महत्वपूर्ण होती है। लेकिन हर नाम या प्रतीक का मतलब केवल सतही व्याख्या से नहीं निकाला जाना चाहिए। भारतीय सेना एक धर्मनिरपेक्ष संस्था है, और उसके अभियानों का लक्ष्य धर्म, जाति या भाषा से ऊपर उठकर राष्ट्रीय सुरक्षा होता है। इस वक्त ऑपरेशन के पीछे की रणनीति, नागरिक सुरक्षा और आतंकवाद की चुनौती पर ध्यान देना अधिक जरूरी है, न कि कोडनेम पर विवाद खड़ा करना।
“ऑपरेशन सिंदूर” के नाम पर आपत्ति दर्ज कराने से पहले हमें यह समझना चाहिए कि यह केवल एक प्रतीकात्मक नाम है, न कि धार्मिक भावनाओं पर आघात। जब देश की सुरक्षा दांव पर हो, तब नाम पर बहस करने के बजाय हमें सेना और सुरक्षा बलों को नैतिक समर्थन देना चाहिए। जरूरी यह है कि देश में शांति लौटे, न कि नामों पर बेवजह विवाद फैले।