बायो-प्लास्टिक: छह माह में नष्ट होने वाला प्लास्टिक, किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए वरदान

नई दिल्ली।13 जून 2025, शब्दरंग समाचार:

आज के दौर में प्लास्टिक कचरा दुनिया की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्याओं में से एक बन चुका है। भारत में प्रतिदिन करीब 26,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा बिना रिसायक्लिंग के वातावरण में जमा होता जाता है। लेकिन अब बायो-प्लास्टिक के रूप में एक नई तकनीक सामने आई है, जो न केवल पर्यावरण को राहत देगी, बल्कि किसानों के लिए भी आय का नया जरिया बन सकती है।

बायो प्लास्टिक क्या है?

बायो प्लास्टिक एक प्रकार का जैविक रूप से विघटित होने वाला प्लास्टिक है जिसे गन्ना, मक्का, भूसी, उच्छ घास जैसे प्राकृतिक स्रोतों से बनाया जाता है। इसकी खासियत यह है कि यह छह महीने के अंदर स्वतः नष्ट हो जाता है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

बलरामपुर में शुरू हुआ प्रयोग

उत्तर प्रदेश के बलरामपुर की एक चीनी मिल ने इस तकनीक का व्यावसायिक उपयोग शुरू कर दिया है। यह पहल देश में प्लास्टिक उत्पादन के परंपरागत तरीकों से हटकर हरित अर्थव्यवस्था (Green Economy) की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।

किसानों को होगा सीधा लाभ

बायो-प्लास्टिक निर्माण के लिए जिन कच्चे पदार्थों की जरूरत होती है, वे भारतीय किसानों के पास प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इससे:

  • किसानों को अतिरिक्त आय का साधन मिलेगा
  • गन्ने और मक्के जैसे फसलों की बाजार मांग बढ़ेगी
  • चीनी मिलें प्लास्टिक निर्माण में भागीदार बन सकेंगी

यह तकनीक किसानों, उद्योगों और पर्यावरण – तीनों को एक साथ फायदा पहुंचा सकती है।

खाद्य पैकेजिंग और फार्मा सेक्टर में संभावनाएं और चुनौतियां

अवसर:

  • ऑनलाइन खाद्य वितरण और दैनिक उपयोग में आने वाले उत्पादों की अल्पकालिक पैकेजिंग के लिए आदर्श।
  • प्लास्टिक के सीमित जीवन काल से पर्यावरणीय प्रभाव में कमी।

चुनौतियां :

  • सूखे मेवे और फार्मा उत्पाद जैसे लंबी अवधि तक सुरक्षित रहने वाली वस्तुओं के लिए बायो-प्लास्टिक की स्थिरता एक समस्या हो सकती है।
  • अभी इसकी मूल्य प्रतिस्पर्धा पारंपरिक प्लास्टिक से अधिक है, जो बड़े पैमाने पर उपयोग में बाधा बन सकती है।

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