
लखनऊ (Shabddrang Samachar): देव उठनी एकादशी को हिंदू धर्म में विशेष महत्व प्राप्त है। यह एकादशी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है और इसे ‘प्रबोधिनी एकादशी’ या ‘देवोत्थान एकादशी’ भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं।
देव उठनी एकादशी का महत्व
चातुर्मास (आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक) में भगवान विष्णु निद्रा में रहते हैं और इस समय कोई भी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि नहीं किए जाते। देव उठनी एकादशी से उनकी निद्रा समाप्त होती है और वे फिर से सृष्टि के संचालन में सक्रिय होते हैं। इसलिए इस दिन से सभी शुभ कार्यों की शुरुआत मानी जाती है।
व्रत और पूजन विधि
देव उठनी एकादशी का व्रत भक्तों के लिए बहुत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराकर पीले फूल, तुलसी के पत्ते, फल, और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद दीपक जलाकर विष्णु जी की आरती करें और विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।इस दिन विशेष रूप से तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। तुलसी को श्री विष्णु का रूप माना गया है, और इस दिन श्री विष्णु और तुलसी का विवाह कराते हुए सभी प्रकार के अनुष्ठान किए जाते हैं। इस विवाह के बाद से विवाह आदि मांगलिक कार्यों का आरंभ हो जाता है।व्रत कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु ने अपने भक्तों के कल्याण के लिए चार महीने की योग निद्रा ली। जब देवताओं को असुरों के आतंक से मुक्ति नहीं मिली, तो उन्होंने भगवान विष्णु से निवेदन किया। तब भगवान विष्णु ने देव उठनी एकादशी के दिन जागने का वचन दिया। इसके बाद से इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया।
देव उठनी एकादशी के लाभ
इस एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है और सभी पापों का नाश होता है। इसे करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाता है। साथ ही, इस दिन किए गए दान और पुण्य कार्यों का भी अत्यधिक फल प्राप्त होता है।देव उठनी एकादशी को भगवान विष्णु के प्रति आस्था और प्रेम प्रकट करने का विशेष अवसर माना गया है, और इसे पूरे उत्साह व श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।