बांग्लादेश में ISKCON महंत की गिरफ्तारी पर विवाद, दुनियाभर में आलोचना

शब्दरंग संवाददाता: बांग्लादेश में ISKCON से जुड़े महंत चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद यूनुस सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा है। इस घटनाक्रम के बाद दुनिया भर के नेताओं और मानवाधिकार संगठनों ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं, की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं।

अमेरिका से आई कड़ी प्रतिक्रिया

अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) के पूर्व आयुक्त जॉनी मूर ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की। मूर ने इस गिरफ्तारी को खतरनाक कदम बताते हुए कहा कि यह हिंदुओं और बांग्लादेश दोनों के लिए अस्तित्व का संकट है। उन्होंने बाइडेन प्रशासन की आलोचना करते हुए कहा कि अमेरिका इस गंभीर मुद्दे पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहा है।जॉनी मूर ने चेतावनी दी कि यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस मामले पर तत्काल कार्रवाई नहीं की, तो स्थिति और खराब हो सकती है। उन्होंने वैश्विक मानवाधिकार संगठनों से सख्त रुख अपनाने की अपील की। मूर ने कहा कि आने वाले समय में अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में इस मामले में बदलाव की उम्मीद की जा सकती है।

भारत की तीखी प्रतिक्रिया

भारत ने भी इस मामले पर कड़ा रुख अपनाया है। विदेश मंत्रालय (MEA) ने बांग्लादेश में हिंदू संपत्तियों, मंदिरों पर हमले और चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा की। भारत ने बांग्लादेश सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और उनके धार्मिक स्थलों को बचाने की अपील की है।MEA के बयान में आगजनी, लूटपाट और बर्बरता की घटनाओं पर चिंता जताई गई है। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि अल्पसंख्यकों के साथ होने वाली इस तरह की घटनाएं दोनों देशों के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं।

वैश्विक मानवाधिकार संगठनों का रुख

इस घटना के बाद वैश्विक मानवाधिकार संगठनों ने भी यूनुस सरकार की आलोचना की है। उन्होंने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए बढ़ते खतरों को लेकर कार्रवाई की मांग की है।

बांग्लादेश सरकार पर बढ़ता अंतरराष्ट्रीय दबाव

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर दबाव बढ़ रहा है कि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। अमेरिका और भारत के अलावा अन्य देशों के नेताओं ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है। यदि बांग्लादेश ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह उसके अंतरराष्ट्रीय संबंधों और छवि को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।

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