बिहार संवाददाता : बिहार के ग्रामीण इलाकों में मृत्यु जैसे शोकपूर्ण अवसर पर ‘बाईजी का नाच’ करवाने का चलन हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ा है। जहां पहले उम्रदराज़ व्यक्तियों की मृत्यु पर शवयात्रा को बैंड-बाजे के साथ निकालने की परंपरा थी, अब इसमें डांस का आयोजन भी शामिल हो गया है।
पटना की कोमल मिश्रा, जो पिछले 17 सालों से डांस परफॉर्मर हैं, कहती हैं कि पिछले सात-आठ सालों में मृत्यु के अवसरों पर डांस करवाने का चलन बढ़ा है। कोमल के अनुसार, “मरनी हो या शादी, डांस में कोई अंतर नहीं होता। लोग पूरी रात डांस करवाते हैं, और एक रात का 6,000 रुपये तक भुगतान करते हैं।
आयोजन का पैटर्न
डांस रात के 8-9 बजे शुरू होता है और सुबह 4-5 बजे तक चलता है। शुरुआत में हिंदी गाने बजाए जाते हैं, लेकिन आधी रात के बाद भोजपुरी गाने डीजे पर बजने लगते हैं।
विवादास्पद डिमांड
कोमल ने बताया कि दर्शकों की डिमांड के अनुसार, परफॉर्मर्स को लहंगे से शॉर्ट्स में आना पड़ता है। लोग पैसे दिखाकर नर्तकियों को नीचे बुलाते हैं, और उनकी गोद में बैठकर पैसे लेने जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति शादियों और मृत्यु दोनों अवसरों पर समान रूप से होती है।
समाज में मिलीजुली प्रतिक्रिया
इस परंपरा को लेकर समाज में विभिन्न दृष्टिकोण हैं। कुछ लोग इसे एक शोक को उत्सव में बदलने का माध्यम मानते हैं, जबकि अन्य इसे परंपराओं का उल्लंघन और सांस्कृतिक पतन के रूप में देखते हैं।’बाईजी का नाच’ बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में एक नए सामाजिक ट्रेंड के रूप में उभर रहा है, लेकिन यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या शोक और उत्सव की सीमाएं धुंधली हो रही हैं।