शब्दरंग स्टूडियो में आज का व्यस्त दिन: पॉडकास्ट और हनुमान चालीसा पर विशेष जानकारी
शब्दरंग साहित्य। लखनऊ। आज शब्दरंग स्टूडियो में एक सक्रिय और रचनात्मक माहौल देखने को मिला। दिनभर में कई महत्वपूर्ण शूटिंग हुईं, जिनमें धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक विषयों को शामिल किया…
शब्दरंग साहित्य में पढ़िए उल्लास की कविता ” मूक प्रणय”
। मूक प्रणय । मैं एक ठिठका हुआ उजास हूँ भोर का जिसके पास सूरज के होने की कोई रक्तिम रेखा नहीं मेरे पास तपते कपोल हैं जागते अश्रुओं के…
शब्दरंग साहित्य में आज पढ़िए गीतिका वेदिका की कविता
विजयी लेखनी वाले प्रियतमकोई गीत लिखो!सुलझ जाये मेरी सब उलझनकोई गीत लिखो! लिखो नाक की लौंग चमकतीबिंदिया बन जाती हैलिखो कान की बाली गुमकरमाटी सन जाती है इतरा उठें पायलें…
शब्दरंग साहित्य में पढ़िए प्रियदर्शन जी की कविता ” इतिहास में पन्ना धाय “
मैं शायद तब सोया हुआ था जब तुम मुझे अपनी बाँहों में उठाकर राजकुमार की शय्या तक ले गई माँ, हो सकता है, नींद के बीच यह विचलन इस आश्वस्ति…
हिन्दुस्तानी अकादमी के पूर्व अध्यक्ष 91 वर्षीय हरिमोहन मालवीय नहीं रहे
शब्दरंग संवाददाता: वरिष्ठ साहित्यकार हरिमोहन मालवीय का 91 वर्ष की उम्र में बुधवार रात्रि लखनऊ में निधन हो गया। पत्नी की मृत्यु के बाद से मालवीय जी अपने पुत्र गौरव…
गगन गिल को हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार
नई दिल्ली, संवाददाता: प्रख्यात कवयित्री गगन गिल को उनके कविता संग्रह “मैं जब तक आई बाहर” के लिए हिंदी के प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इस प्रतिष्ठित…
शब्दरंग साहित्य में पढ़िए प्रियंबदा पांडेय की कविता, ” उपासना का सूर्य”
उपासना का सूर्य वह जिसने बचपन में चुने थे फूल माई को चढ़ाने को खाई थी कुमारिकाओं की पाँत में पूड़ी,सब्जी और खीर। विस्मित होती थी जब लोग उसका पैर…
शब्दरंग साहित्य में पढ़िए अरुण धर्मावत की कविता,”एक पहेली ज़िन्दगी”
“एक पहेली ज़िन्दगी”~~संबंधों के रंगमंच पेनृत्य करती ज़िन्दगीकभी ये हंसती गाती हैकभी ये रोती ज़िन्दगी रिश्तों की बुनियादें धूमिलकुछ धूमिल धूमिल रिश्ते हैंआते जाते रंग बदलतीसांझ सवेरे ज़िन्दगी संबंधों के…
शब्दरंग साहित्य में आज पढ़िए सत्या सिंह की ग़ज़ल
भले पुराना सही लाख पैरहन मेरा। ख़ुदा का शुक्र है नंगा नही बदन मेरा। तबाह वक़्त के हाथों हुआ हूँ मैं वरना, कभी मिसाल था यारों रहन -सहन मेरा। उसी…
आज पढ़िए शब्दरंग साहित्य में पूनम वासम की कविता
पूछना तो चाहती थी वह नहीं जानती नदी के उस पार पगडंडी नहीं बल्कि कोई जादुई दुनिया है इस उम्र तक आते-आते वह सिर्फ साइकिल की सवारी का ही सुख…