
उप्र (Shabddrang Samachar): कहते हैं जन्म के छठवें दिन हमारी चेतना खुलती है, इसलिए बच्चे की छठी मनाई जाती है ताकि इस संसार की भीड़ में वह अपनों को पहचान सके और उसे छठी का दूध याद रहे??इस दिन बच्चे को कोई अपना सा लगता है तो वह सिर्फ उसकी माँ होती है, जो उसे अपना दूध पिला कर उसका पोषण करती है..।इस सृष्टि का भी जन्म हुआ होगा..और उसकी भी माँ होगी, जिसने अपनी ऊर्जा से उसे सिंचित किया होगा.. छठी माई, इस सृष्टि की माँ है और उसे नमन करने का पर्व है “छठ”!!जैसे जैसे चेतना विकसित होती है तो माँ के साथ साथ सारा संसार भी नजर आने लगता है..सही मायने में एक माँ, अपने बढ़ते बच्चे को,धीरे धीरे प्रकृति की गोद में सौंपती चली जाती है ताकि उसका नन्हा सा पौधा, प्रकृति की गोद में फल-फूल कर एक बड़ा वृक्ष बन सके.. सभी माँ की यही इच्छा होती है?? जिसके लिए उसे एक बाह्य ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है जिसका स्त्रोत “सूर्य” है।अध्यात्म की बात करें तो शरीर का छठवां चक्र “गुरु” होता है..माँ, जीवन की प्रथम गुरु होती है..गुरु ही वह शक्ति है जिसके सहारे एक नन्हा पौधा, विशाल वृक्ष में परिवर्तित हो पाता है.. सूर्य इस संसार की वही शक्ति है।छठी माई और सूर्य उपासना का पर्व ही “छठ” है..जिसमें माँ और सूर्य से यही विनती होती है कि उनकी कृपा हमेशा बनी रहे और साथ ही संतान को सदा यह याद रहना चाहिए कि इस जगत में यदि कोई अपना है तो वह उसकी “माँ” है।आज उदयाचल सूर्य के अर्ध्य के साथ छठ महापर्व का समापन हो गया..जिसमें हमें यह विदित होना चाहिए कि चेतना के खुलने और विकसित होने पर, सूर्य की ऊर्जा से हम प्रगति तो करें ही लेकिन माँ को सदा याद रखें, जिसका नाम है “छठी मईया”??
🙏सभी को छठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं🙏
लेखिका :मनु लक्ष्मी मिश्रा