नित विरल होती जा रही है संवेदना
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छल , छद्म , स्वार्थ का बादल
नित होता घना
नित विरल होती जा रही है
संवेदना
संकुचित होते जा रहे
सोच के दायरे
विश्वास खोते जा रहे
साथ चलते दूसरे
नयन देखते नहीं अब
खुद से परे
मंद होती जा रही
चेतना
नित विरल होती जा रही है
संवेदना
फंस रहा मनुज
खुद के फैलाये जाल में
मात खाता है वो
अपनी चाल में
व्यस्त है आज मनुज
नूतन अभिलाषा की पड़ताल में
बेहद कठिन है अब
धैर्य हृदय में रखना
नित विरल होती जा रही है
संवेदना
प्रेम , दैहिक आकर्षण में
समाता जा रहा है
धूम अंतर्मन में
छाता जा रहा है
उन्मुक्तता , लाज के फूलों को
सुखाती जा रही है
अनुराग पीछे छुट गया
आगे बढ़ चुकी है वासना
नित विरल होती जा रही है
संवेदना ।
डॉ. अभिषेक कुमार
ग्राम + पोस्ट – सदानंदपुर
थाना – बलिया
जिला – बेगूसराय ( बिहार )
पिन कोड – 851211
मोब – 9304664551