शब्दरंग लखनऊ: केजरीवाल के दरवाजे पर सैकड़ों इमाम और मौलवी कटोरा लेकर खड़े हैं और वेतन की भीख मांग रहे हैं दूसरी तरफ नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के आंकड़े कहते हैं कि देश की जीडीपी में मंदिरों का योगदान ही 2.32 प्रतिशत है भारत में कुल 18 लाख मंदिर हैं । इनमें 33 हजार विशेष मंदिर हैं । 52 शक्तिपीठ और 12 ज्योतिर्लिंग हैं । नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के मुताबिक देश में धार्मिक यात्रा पर हिंदू हर साल 4.74 लाख करोड़ रुपए खर्च करते हैं पूरे देश में हिंदू धार्मिक यात्राओं से 8 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है । इसमें भी अमरनाथ और वैष्णो देवी से कमाने वाले 90 प्रतिशत लोग मुसलमान हैं । सोमनाथ मंदिर से भी 60 प्रतिशत कमाई करने वाले मुसलमान हैं । कुछ लोग हिंदू धर्म को नीचा दिखाने के लिए बार बार ये तर्क देते हैं कि आखिर मंदिर बनाने से क्या होगा तो वो ये जान लें कि फूल, तेल, दीपक, इत्र, चूड़ियां, सिंदूर, पूजा और चित्र बेचकर करोड़ों लोग अपना जीवन चला रहे हैं । अगर आप अपने आस पास भी गौर करें तो पाएंगे कि एक छोटा मंदिर कम से कम 25 लोगों को रोजगार दे रहा है । काशी विश्वनाथ में व्हीलचेयर वाले भी हर दिन हजार रुपए कमाते हैं । देश के तमाम मंदिरों में चंदन लगाने वाले हर दिन 300 से 500 रुपए कमाते हैं । देश में 3.5 लाख मस्जिदें हैं लेकिन इनसे कोई रोजगार पैदा नहीं होता है बल्कि कई राज्यों में मुल्ला मौलवियों को सरकारी खजाने से वेतन मिलता है जिससे सरकारी खजाने पर ही बोझ बढ़ता है मंदिरों और हिंदुओं के टैक्स से मुल्ला मौलवियों का पेट भर रहा है । फिर ये हिंदू धर्म को गालियां भी देते हैं । ये है सेक्युलरिज्म की वो कीमत जो हिंदू चुका रहे हैं । लोग बार बार कहते हैं कि मंदिर सरकारों के नियंत्रण से मुक्त हों । या फिर मस्जिद पर भी सरकारी नियंत्रण हो लेकिन सोचने वाली बात ये है कि मस्जिद से कोई आय ही नहीं होती तो सरकार को नियंत्रण से भी कोई फायदा नहीं मिलने वाला है ।
लेखक- दिलीप पाण्डेय, रिसर्चर, पत्रकार दिल्ली