बटोगे तो कटोगे

Haryana (Shabddrang samachar): हरियाणा का चुनाव “बटोगे तो कटोगे” के नारे से जीता गया।

हरियाणा में चुनाव हो चुके हैं और वहां भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी बन चुकी है। कई जगह यह कहा जा रहा है कि योगी जी का नारा “बटोगे तो कटोगे” कामयाब हो गया, लेकिन असल सवाल यह है कि “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” के नारे के स्थान पर इतने बड़े कट्टरता के नारे की एनडीए को आवश्यकता क्यों पड़ी? क्या वास्तव में बीजेपी कट्टरता की ओर बढ़ रही है, जो पिछले 10 साल के शासन में नहीं दिखा? हो सकता है कि यह किसी क्रिया के विरुद्ध प्रतिक्रिया हो। अब सवाल यह है कि ऐसी कौन सी क्रिया हुई, जिसके कारण बीजेपी को यह नारा लगाना पड़ा?

हिंदुओं को एक करना तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी का मूल उद्देश्य था, किंतु मुस्लिम-विरोधी रुख पहले अपेक्षाकृत कम दिखता था। लेकिन यह नारा स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि यदि हिंदू बंटे, तो उनका हाल पाकिस्तान या बांग्लादेश के हिंदुओं जैसा हो सकता है। बीजेपी को इस प्रकार सोचना इसलिए पड़ा कि धुले लोकसभा चुनाव में, जहां उसने पांच विधानसभा क्षेत्रों में एक लाख नब्बे हजार से अधिक बढ़त हासिल की थी, वहां मालेगांव सेंट्रल में उसे केवल चार हजार वोट ही मिले, जबकि विपक्षी पार्टी को दो लाख से अधिक वोट प्राप्त हुए। इस प्रकार, वह सीट बीजेपी लगभग चार हजार मतों से हार गई। मुस्लिम बहुल इस सीट पर मुस्लिम समुदाय ने जबरदस्त एकता का प्रदर्शन किया, जिसके चलते बीजेपी को सिर्फ चार हजार वोट ही मिल सके, जबकि विपक्ष को दो लाख से अधिक मत मिले। यह एक ऐसा अलार्मिंग संकेत था, जिसने बीजेपी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मुस्लिम समुदाय की एकता उसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों के साथ-साथ सामान्य सीटों पर भी हराने की क्षमता रखती है।

अगर पुराने अनुभवों पर नजर डालें, तो पाकिस्तान बनने के समय देशभर के मुस्लिमों ने एकजुट होकर पाकिस्तान के पक्ष में मतदान किया था। यह इतिहास कहीं न कहीं बीजेपी के मन में डर पैदा करता है, इसी कारण वह हिंदू वोटों को जाति में विभाजित नहीं होने देना चाहती और मुसलमानों की तरह हिंदुओं में भी एकता चाहती है। यह बात सामाजिक संरचना के विपरीत है, लेकिन बीजेपी और देश की मजबूरी भी है।

सच तो यह है कि लोकतंत्र में अच्छे या बुरे कार्यों के आधार पर विधायक या सांसद को चुना जाना चाहिए, किंतु यह चुनाव कब तक हिंदू, मुसलमान, दलित, अगड़ा, पिछड़ा के आधार पर होता रहेगा, यह समय ही बताएगा। तब तक इस देश में लोकतंत्र कितना मजबूत है, यह कहना आसान नहीं।

प्रधान संपादक: राजेश कुमार

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