
शब्दरंग समाचार: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में पाकिस्तान को बहुपक्षीय वित्तीय सहायता देने का फैसला किया। इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि भारत ने इसके खिलाफ वोट क्यों नहीं किया।
विशेषज्ञों के मुताबिक, IMF जैसी बहुपक्षीय संस्था में कोई भी फैसला अकेले भारत या किसी एक देश के विरोध से नहीं रुकता। अमेरिका, यूरोप, जापान जैसे बड़े हिस्सेदार मिलकर मुख्य निर्णय लेते हैं। IMF का उद्देश्य सदस्य देशों की आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है, भले ही वह देश पाकिस्तान जैसा पड़ोसी हो, जिससे भारत के संबंध तनावपूर्ण हैं।
अगर भारत विरोध में वोट करता भी, तो पाकिस्तान को लोन मिलना तय था, क्योंकि बाकी बड़े देशों का समर्थन था। ऐसी स्थिति में भारत का विरोध दर्ज तो होता, मगर पाकिस्तान इसे अपनी जीत के रूप में प्रचारित करता: “देखो, भारत ने हमारे खिलाफ वोट किया, फिर भी हम लोन हासिल कर गए।” कूटनीतिक गलियारों में इसे ‘अनावश्यक साख गंवाना’ माना जाता।
विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने अपनी गंभीरता बनाए रखी, क्योंकि उसे पता है कि पाकिस्तान से असली मुकाबला सीमा पर, आतंकवाद पर, और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर होता है — IMF के वोटिंग रूम में नहीं।
सरकार के सूत्रों का कहना है कि भारत की रणनीति सोशल मीडिया की बहसों में नहीं, ज़मीनी हकीकत और दीर्घकालिक कूटनीतिक सोच में नज़र आती है।