ईरान और रूस के बीच हुए सैन्य समझौते क्या पश्चिमी देशों की बेचैनी बढ़ाने वाले हैं?

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शब्दरंग समाचार: ईरान और रूस के हालिया सैन्य और आर्थिक समझौतों ने वैश्विक राजनीति में हलचल मचा दी है। दोनों देशों पर पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण पहले से ही वैश्विक शक्ति संतुलन में तनाव था, और अब इन समझौतों ने पश्चिमी देशों की चिंताओं को और बढ़ा दिया है।

क्या समझौते में शामिल है?

1. रणनीतिक साझेदारी

20 साल के लिए रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, और प्रौद्योगिकी में सहयोग।संयुक्त सैन्य अभ्यास, अधिकारियों के लिए साझा प्रशिक्षण, और सुरक्षा खतरों पर परस्पर समर्थन।किसी तीसरे देश के हमले पर एक-दूसरे की सुरक्षा सुनिश्चित करना।

2. ऊर्जा सहयोग

रूस से ईरान तक गैस पाइपलाइन का प्रस्ताव।हर साल 55 अरब क्यूबिक मीटर गैस की आपूर्ति।ईरान में नई परमाणु ऊर्जा इकाइयों के निर्माण पर विचार।

3. सुरक्षा और सैन्य सहयोग

ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल तकनीक में भागीदारी।आपसी क्षेत्रों का उपयोग दूसरे पक्ष के ख़िलाफ़ नहीं होने देना।

वैश्विक “एकध्रुवीयता” और “पश्चिमी आधिपत्य” का विरोध।

4. आर्थिक और व्यापारिक संबंध

प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए व्यापार बढ़ाने पर सहमति।

रूस को ईरान के साथ अपने उत्पादों का नया बाज़ार मिलने की संभावना।

पश्चिमी देशों की चिंता क्यों?

1. सैन्य तकनीक का आदान-प्रदान

ईरान पहले से ही रूस को ड्रोन और मिसाइलें सप्लाई कर रहा है, जो यूक्रेन युद्ध में उपयोग हो रही हैं।यह सहयोग पश्चिमी देशों के हथियार प्रतिबंधों को चुनौती देता है।

2. भू-राजनीतिक असर

यह गठबंधन पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देता है।मध्य एशिया और मध्य पूर्व में रूस-ईरान की निकटता नई भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण की ओर संकेत करती है।

3. प्रतिबंधों का प्रभाव घटाना

इन समझौतों के जरिए दोनों देश अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों को कमजोर कर सकते हैं।गैस और ऊर्जा सहयोग से रूस को पश्चिमी बाजारों की कमी से उबरने का मौका मिलेगा।

4. सुरक्षा चिंता

यदि यह सहयोग आगे बढ़ता है, तो रूस और ईरान मिलकर अपने हथियार और तकनीक साझा कर सकते हैं, जो पश्चिमी देशों के लिए खतरा बन सकता है।

विश्लेषण: यह पश्चिम के लिए कितना बड़ा खतरा है?

यह समझौता पश्चिमी देशों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती प्रस्तुत करता है।

सैन्य स्तर पर:

ईरान-रूस के सैन्य सहयोग का सीधा प्रभाव यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में देखा जा सकता है।

आर्थिक स्तर पर:

रूस और ईरान का सहयोग पश्चिमी प्रतिबंधों को अप्रभावी बनाने की दिशा में एक कदम है।

राजनीतिक स्तर पर:

यह समझौता बहुध्रुवीय दुनिया की ओर बढ़ने की प्रक्रिया को तेज कर सकता है।

हालांकि, यह साझेदारी पूरी तरह से असंतुलित है। रूस आर्थिक रूप से संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों पर अधिक निर्भर है, जबकि ईरान की सैन्य क्षमताओं पर निर्भरता रूस की प्राथमिकता हो सकती है।

रूस-ईरान समझौता केवल आर्थिक या सैन्य साझेदारी नहीं है; यह एक भू-राजनीतिक बयान है जो पश्चिमी प्रभुत्व को खुली चुनौती देता है। हालांकि यह सहयोग पश्चिमी देशों को तत्काल कोई बड़ा खतरा नहीं दिखाता, लेकिन यह भविष्य में वैश्विक शक्ति संतुलन को बदलने की दिशा में एक कदम साबित हो सकता है।

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