
श्रीनगर, 7 अगस्त , शब्दरंग समाचार: जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने राज्य में 25 किताबों के प्रकाशन और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार का कहना है कि ये किताबें झूठे विमर्शों, अलगाववादी विचारों और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली सामग्री से भरी हुई हैं और युवाओं को गुमराह कर रही हैं।
गृह विभाग द्वारा जारी आदेश में स्पष्ट किया गया है कि विश्वसनीय खुफिया रिपोर्ट और जांच के आधार पर यह निर्णय लिया गया है। आदेश के अनुसार, यह साहित्य धीरे-धीरे युवाओं के मन में भारत विरोधी सोच भरता है और उन्हें हिंसा तथा आतंकवादी गतिविधियों की ओर उकसाता है।सरकार की ओर से जिन 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें कई नामचीन लेखकों की रचनाएं भी शामिल हैं। इनमें मौलाना अबुल आला मौदूदी की अल जिहाद फिल इस्लाम, अरुंधति रॉय की आज़ादी, ए.जी. नूरानी की कश्मीर डिस्प्यूट (1947–2012), डेविड देवदास की इन सर्च ऑफ ए फ्यूचर, विक्टोरिया स्कोफील्ड की कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट, और क्रिस्टोफर स्नेडेन की इंडिपेंडेंट कश्मीर जैसी किताबें शामिल हैं।
प्रशासन ने सभी जिलों के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि संबंधित पुस्तकों को बाजार से तुरंत हटाया जाए और इन्हें किसी भी रूप में दोबारा प्रकाशित या बेचा न जाए।
विवाद खड़ा, दो पक्षों में बंटी राय
सरकार के इस कदम को लेकर दो तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ लोग इसे युवाओं को कट्टरपंथी विचारधारा से बचाने के लिए ज़रूरी कदम मान रहे हैं, जबकि कई बुद्धिजीवियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है।लेखकों, प्रकाशकों और शिक्षाविदों के कुछ वर्गों ने सवाल उठाया है कि क्या असहमति के स्वर को दबाना देशहित में उचित है या नहीं। वहीं प्रशासन का कहना है कि यह कार्रवाई कानून व्यवस्था बनाए रखने और राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई है।गौरतलब है कि केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में हाल के वर्षों में कई बार इस बात को लेकर चिंता जताई गई है कि कुछ साहित्य और प्रचार सामग्री युवाओं को भड़काने का काम कर रही है।