सीकर (राजस्थान), शब्दरंग समाचार: फाल्गुन के पावन महीने में राजस्थान के सीकर जिले का खाटू गांव भक्ति और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। बाबा खाटू श्याम के दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु यहां जुट रहे हैं। रंग-बिरंगी झंडियों के साथ नंगे पांव भक्तों का सैलाब अपने आराध्य के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंच रहा है।
खाटू श्याम, जिन्हें “हारे का सहारा” कहा जाता है, श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त और महाभारत के महाबली योद्धा बर्बरीक का ही रूप हैं। बर्बरीक महाबली भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। उनकी माता मौरवी ने उन्हें युद्धनीति और शस्त्रविद्या का अद्वितीय ज्ञान दिया था। देवताओं के आशीर्वाद से बर्बरीक के पास केवल तीन दिव्य बाण थे, जिनकी शक्ति से वह पूरी सृष्टि का नाश करने में सक्षम थे।
“हारे का सहारा” बनने का वचन:
महाभारत युद्ध में शामिल होने के लिए निकलते समय बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया था कि वह केवल हारने वाले और कमजोर पक्ष का साथ देंगे। इसी कारण से उन्हें “हारे का सहारा” कहा जाने लगा।
श्रीकृष्ण से भेंट और शीशदान:
कुरुक्षेत्र के मार्ग में बर्बरीक से श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में भेंट की और उनके तीन बाणों की शक्ति को परखा। जब बर्बरीक ने अपनी धनुर्विद्या का अद्भुत प्रदर्शन किया, तो कृष्ण उनकी क्षमता को देखकर चकित हो गए। तब उन्होंने बर्बरीक से दान मांगते हुए उनका शीश (सिर) मांगा। अपने वचन के पक्के बर्बरीक ने तुरंत अपना शीश दान कर दिया।
खाटू श्याम का वरदान:
बर्बरीक की इस महान भक्ति और त्याग से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में वे “खाटू श्याम” के रूप में पूजे जाएंगे। तभी से खाटू श्याम को “हारे का सहारा” कहा जाता है और उनका दरबार हर उस व्यक्ति के लिए खुला है, जो दुख और संकट में है।
भक्ति का सैलाब:
फाल्गुन मेले के दौरान खाटू गांव दुल्हन की तरह सजता है। भक्तजन बाबा श्याम के भजन गाते हुए, झंडियां लहराते हुए मंदिर की ओर बढ़ते हैं। नंगे पांव चलने की यह परंपरा उनके प्रति अपार श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है।खाटू श्याम की यह अद्वितीय कथा भक्ति, त्याग और कृष्ण प्रेम की मिसाल है। यहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु अपने “हारे के सहारे” के दर्शन के लिए उमड़ते हैं, इस विश्वास के साथ कि बाबा श्याम उनके जीवन के हर दुख को हर लेंगे।