महाकुंभ 2025: अमृत स्नान के बाद क्यों लौटने लगे नागा साधु? जानें खास वजह

प्रयागराज: आस्था, श्रद्धा और साधना का महापर्व प्रयागराज महाकुंभ 2025 इस बार 13 जनवरी से आरंभ हुआ था, जिसका समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर होगा। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, अभी महाकुंभ के समाप्त होने में 21 दिन शेष हैं और नागा साधु अपने-अपने अखाड़ों के साथ वापसी करने लगे हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर साधु-संतों की इस असमय विदाई की वजह क्या है?

अमृत स्नान का महत्व और साधुओं की उपस्थिति

नागा साधु अपने तपस्वी जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर, साधना और तप में लीन रहते हैं। सामान्यतः वे पहाड़ों, गुफाओं और आश्रमों में कठोर तपस्या करते हैं। लेकिन जैसे ही कुंभ मेले का आयोजन होता है, देश भर के अखाड़ों के नागा साधु संगम तट पर एकत्रित होते हैं ताकि अमृत स्नान का पुण्य लाभ प्राप्त कर सकें।

महाकुंभ 2025 में तीन प्रमुख अमृत स्नान आयोजित किए गए:

1. पहला अमृत स्नान – 14 जनवरी (मकर संक्रांति)

2. दूसरा अमृत स्नान – मौनी अमावस्या

3. तीसरा और अंतिम अमृत स्नान – बसंत पंचमी के दिन

इन स्नानों के दौरान साधु-संत संगम में डुबकी लगाकर आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त करते हैं और कुंभ मेले के मुख्य उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।

क्यों लौट रहे हैं नागा साधु?

अमृत स्नान नागा साधुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इससे एक हजार अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है। जब तक अंतिम अमृत स्नान नहीं हो जाता, तब तक वे मेले में उपस्थित रहते हैं। इस बार अंतिम स्नान बसंत पंचमी के दिन संपन्न हो चुका है, जिसके बाद साधु-संत अपने-अपने अखाड़ों की ओर लौटने लगे हैं।

इसके पीछे एक और धार्मिक परंपरा है—अमृत स्नान के बाद साधु-संत गहरे ध्यान, तपस्या और धर्मचर्चा में लीन होना पसंद करते हैं। भीड़-भाड़ से दूर रहकर वे अपनी साधना को पुनः जारी रखते हैं।

अब कब दिखेंगे नागा साधु?

अब नागा साधु सीधे 2027 में नासिक कुंभ मेले में दिखाई देंगे, जो गोदावरी नदी के तट पर आयोजित होगा। वहां भी हजारों की संख्या में नागा साधु एकत्रित होकर अमृत स्नान करेंगे और आस्था की इस परंपरा को आगे बढ़ाएंगे।

महाकुंभ में साधना का संदेश

महाकुंभ केवल स्नान और दर्शन का पर्व नहीं है बल्कि यह साधना, आत्मशुद्धि और अध्यात्म का महोत्सव भी है। नागा साधुओं की यह परंपरा हमें यही सिखाती है कि जीवन में साधना और संयम का कितना बड़ा महत्व है।

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