शब्दरंग समाचार: महाकुंभ, जो करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और धर्म का महापर्व है, 2025 में अपनी भव्यता और दिव्यता के साथ लौट रहा है। इस पर्व का एक और महत्वपूर्ण पहलू है अखाड़े, जिनकी उत्पत्ति, परंपरा और इतिहास गहरी जड़ें रखते हैं।
अखाड़ों का प्रारंभ और उद्देश्य
अखाड़ों की स्थापना का श्रेय प्राचीन भारतीय संत आदि शंकराचार्य को दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रसार और हिंदू धर्म पर उसके प्रभाव को रोकने के लिए अखाड़ों की शुरुआत की थी।
शास्त्र और शस्त्र: अखाड़ों का उद्देश्य केवल आध्यात्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं था, बल्कि उनमें शस्त्र चलाने और शरीर को शक्तिशाली बनाने की शिक्षा दी जाती थी।
संरक्षण और प्रचार: इन अखाड़ों ने हिंदू धर्म और संस्कृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अखाड़ों का विकास
शुरुआत में केवल चार प्रमुख अखाड़े थे। समय के साथ मतभेद और संगठनात्मक विस्तार के कारण इनकी संख्या बढ़कर वर्तमान में 13 हो गई।
- शैव संप्रदाय (7 अखाड़े): ये शिव के उपासक होते हैं।
- जूना अखाड़ा
- आह्वान अखाड़ा
- अग्नि अखाड़ा
- निरंजनी अखाड़ा
- महानिर्वाणी अखाड़ा
- आनंद अखाड़ा
- अटल अखाड़ा
- वैष्णव संप्रदाय (3 अखाड़े): ये विष्णु के उपासक हैं।
- निर्मोही अखाड़ा
- दिगंबर अखाड़ा
- निर्वाणी अणि अखाड़ा
- उदासीन संप्रदाय (3 अखाड़े): ये गुरु नानक के अनुयायी हैं।
- बड़ा उदासीन अखाड़ा
- नया उदासीन अखाड़ा
- निर्मल अखाड़ा
किन्नर अखाड़ा: विवाद और मान्यता
2015-16 में किन्नर अखाड़ा अस्तित्व में आया। इसे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद द्वारा अभी तक मान्यता नहीं दी गई है। इसके संस्थापक लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इसे समाज में किन्नरों की स्वीकृति और सम्मान को बढ़ावा देने का माध्यम बताया।
महामंडलेश्वर: अखाड़ों का सर्वोच्च पद
महामंडलेश्वर अखाड़ों में सबसे ऊंचा पद होता है।
चयन प्रक्रिया:
- सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान।
- संन्यास और स्वयं का पिंडदान।
- पट्टाभिषेक और अखाड़ों के संतों की सहमति।
भूमिका:
महामंडलेश्वर कुंभ जैसे आयोजनों में शाही स्नान का नेतृत्व करते हैं।
विवाद और चुनौतियां
अखाड़ों के विशाल संसाधन और संपत्तियां कई बार विवाद का कारण बनी हैं।
आंतरिक संघर्ष: जमीनों के स्वामित्व और प्रबंधन को लेकर विवाद।
आपराधिक मामले: कुछ महंतों पर गंभीर आरोप लग चुके हैं।
राजनीतिक हस्तक्षेप: अखाड़ों के महंतों की राजनीति में बढ़ती दिलचस्पी।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद
1954 में स्थापित इस परिषद का काम सभी अखाड़ों के बीच सामंजस्य बनाए रखना और विवादों का हल निकालना है।
महाकुंभ 2025 में अखाड़ों की भूमिका
महाकुंभ में अखाड़े अपनी भव्य शाही सवारियों, रथ, हाथी-घोड़ों और धार्मिक प्रदर्शन से श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण बनते हैं। ये हिंदू धर्म की अद्वितीय परंपरा और शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।
अखाड़े हिंदू धर्म के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं। महाकुंभ जैसे आयोजनों में इनकी भव्यता और परंपराएं श्रद्धालुओं को न केवल आध्यात्मिक प्रेरणा देती हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति की गौरवशाली विरासत का अनुभव कराती हैं।