महाविकास अघाड़ी में दरार: उद्धव ठाकरे के ‘एकला चलो’ के संकेत, शिवसेना (यूबीटी) के कैडर की स्वतंत्र चुनाव की मांग

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शब्दरंग समाचार। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन की करारी हार के बाद गठबंधन में दरारें साफ दिखने लगी हैं। हार के बाद उद्धव ठाकरे ने शिवसेना (यूबीटी) को नई रणनीति के साथ खड़ा करने का फैसला किया है। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में यह भावना गहराई से बढ़ रही है कि शिवसेना को अपनी मूल पहचान बनाए रखने और राजनीतिक प्रभुत्व हासिल करने के लिए कांग्रेस और एनसीपी से अलग होकर स्वतंत्र रूप से बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) चुनाव लड़ना चाहिए।

कैडर की स्वतंत्र चुनाव की मांग

ठाकरे गुट में कई नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं का मानना है कि MVA गठबंधन, विशेषकर कांग्रेस के साथ, शिवसेना की पहचान को कमजोर कर रहा है। मुंबई में लंबे समय से शिवसेना की गढ़ मानी जाने वाली बीएमसी पर एक बार फिर कब्जा जमाने के लिए पार्टी को स्वतंत्र रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।पिछले विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे और कांग्रेस-शिवसेना (यूबीटी) के बीच हुए टकराव ने कार्यकर्ताओं के बीच कड़वाहट पैदा की। मातोश्री में हाल ही में हुई बैठकों में स्थानीय नेताओं ने इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया। उनका कहना है कि गठबंधन से अलग रहकर पार्टी न केवल अपने कैडर को मजबूत कर सकती है, बल्कि मतदाताओं में अपनी पुरानी छवि को भी बहाल कर सकती है।

ठाकरे की समीक्षा और निर्णय

उद्धव ठाकरे ने पिछले एक महीने से पार्टी की तैयारियों और संगठनात्मक ढांचे की समीक्षा की है। वार्ड-स्तरीय ताकत और कमजोरियों का विश्लेषण किया गया है। स्थानीय नेताओं ने बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने के लिए दबाव डाला है, लेकिन अंतिम निर्णय ठाकरे के हाथ में है। शुक्रवार तक दक्षिण मुंबई के छह निर्वाचन क्षेत्रों की समीक्षा पूरी होने के बाद पार्टी की रणनीति को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है।

बीएमसी चुनाव: प्रतिष्ठा की लड़ाई

शिवसेना (यूबीटी) के लिए बीएमसी चुनाव केवल नगर निकाय पर कब्जा जमाने की बात नहीं है, बल्कि यह पार्टी के राजनीतिक प्रभुत्व और अस्तित्व की लड़ाई है। दूसरी ओर, बीजेपी, कांग्रेस और शिंदे गुट भी अपनी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में हैं।अब देखना यह होगा कि शिवसेना (यूबीटी) ‘एकला चलो’ का फैसला करती है या गठबंधन के हिस्से के रूप में चुनाव लड़ती है। ठाकरे के इस फैसले का न केवल बीएमसी चुनाव, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति पर भी गहरा असर होगा।

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