शब्दरंग साहित्य में आज पढ़िए बेहद सरल , स्नेहिल , बहु प्रतिभाशाली व्यक्तित्व की धनी प्रोफेसर मंगला रानी जी को।

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फाग छोड़े जाते हो !

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मुस्कानों के छंद में

साज छोड़े जाते हो,

राग बिहाग अनुराग

छोड़े जाते हो..!

आँखों की कोरों के

नशीले इशारों में,

सुरीले रसीले संवाद

छोड़े जाते हो..!

सोना सा रूप,

मनुहार छोड़े जाते हो,

प्राणों में सोलह,

श्रृंगार छोड़े जाते हो..!

बिरहा की तानों में

राग छोड़े जाते हो,

मिलकर फिर मिलने की,

आग छोड़े जाते हो..!

जागरण का शंख जब

बजता है प्राणों में,

ठूठों से उड़ते ये

काग छोड़े जाते हो..!

असर छोड़ जाते हो,

दाग छोड़े जाते हो,

रक्त के हैं बुलबुले,

या फ़ाग छोड़े जाते हो..!!

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