आज शब्दरंग साहित्य में पढ़िए सुजाता जी की किताब “विकल विद्रोहिणी पंडिता रमाबाई” पर लेखिका निवेदिता द्वारा लिखी समीक्षात्मक टिप्पणी।

सुजाता द्वारा लिखी पंडिता रमाबाई की ये जीवनी आज भी स्त्रीवादी परिदृश्य में अपरिहार्य कारणों से पठन योग्य हैl

भारत की पहली फेमिनिस्ट स्त्री पंडिता रमाबाई अपने समय के कुछ गिनी चुनी स्त्रियों के साथ जैसे आनंदी बाई जोशी जो भारत की पहली महिला चिकित्सक रहीं, रमाबाई ranade , काशीबाई आदि बहनों को ले ब्राह्मणवाद, पितृसत्ता और पाखण्ड के विरोध में डंके की चोट पर दुनिया के इस छोर से उस छोर तक युद्ध का बिगुल बजा उसमे विजित भी होती हैं lइस किताब से रमाबाई के साथ साथ हर स्त्रीवादी स्त्री के चरित्र, जीवन की चुनौतियाँ, दृढ़ इच्छा शक्ति और हर हाल में स्त्री जाति के मुक्ति के लिए अपना सर्वस्व स्वाहा करने की प्रवृति का पता लगता है l

भले ही रमाबाई आज से डेढ़ सौ साल पहले जन्मी, उनकी लड़ाई परतंत्र भारत के समय की हो , पर पढ़ने पर ये ज्ञात हो जाएगा कि ये सभी समस्याएं आज भी एक स्त्री के लिए ज्यों की त्यों बनीं हुईं हैं l ये किताब भारत में नारी सुधार के काल क्रम की कथा कहते हुए उस समय के पितृसत्तात्मक समाज का विश्लेषण भी सटीक करती है l

गोखले कहते हैं कि एक अकेली स्त्री कुछ नहीं कर सकती, उसके साथ एक पुरुष का होना अवश्यक है l किस तरह की अतिवादी और घृणित भाषा का प्रयोग गोखले द्वारा किया गया है रमाबाई के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती lअपने पत्र केसरी में वो पंडिता रमाबाई को सरेआम गाली देते हैं lस्वामी विवेकानंद जैसे चैतन्य पुरुष भी रमाबाई से ईर्ष्या रखते हैं, वहीं गुरुदेव रवीन्द्रनाथ इनकी निर्भीकता और बेबाकी को पचा नहीं पाते और कितनी सारी नसीहतों की झड़ी लगा देते हैं lये सब जान कर पितृसत्तात्मक समाज की एकता और वर्चस्व का घालमेल साफ समझ आता है lवेदों की ओर लौटो का नारा देने वाले दयानन्द सरस्वती भी रमाबाई के कुल, गोत्र और परिवार की इतनी सूक्ष्म जांच पड़ताल करते हैं कि इसके आगे रमा का पूरा पांडित्य फीका रह जाता है l

किताब एक स्त्री के स्त्रीवादी दृष्टिकोण, दृढ़ संकल्प, आध्यात्मिक उन्नती, स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता के साथ धार्मिक प्रोपेगेंडा, पितृसत्तात्मक समाज और उनीसवीं सदी में नारी सुधार की कथा सब कुछ तथ्यों के साथ रखती है जिससे आज के सामाजिक संरचना और स्त्रीवाद की जरूरत, उसकी लड़ाई और उसके संघर्ष का खिंचने मे सफ़ल रही है

lहालांकि कहीं कहीं रमाबाई की महत्त्वाकांक्षा उन्हें ईसाईयत के गोद में पूरी तरह धकेल देती हैं l इससे उनके ऊपर भारतीय लोगों द्वारा धर्म परिवर्तन का आरोप लगाना इस बात की तस्दीक भी कर रहा होता है कि धर्म भारत के लोगों के लिए मानवता से अधिक महत्पूर्ण है lसिर्फ भारत ही नहीं इंग्लैंड और अमेरिका के लिए भी धर्म का कारबार सबसे अधिक महत्वपूर्ण है lकिताब मे विवाह की तिथि और माँ बनने की तिथि में सिर्फ पांच महीनें का अन्तर, अगर ये सत्य है तो वास्तव में रमाबाई अपने समय से सौ साल आगे चल रही थीं l ऐसी किताबें लिखी जानी चाहिए और पढ़ी भी जानी चाहिए l

बधाई सुजाता दी

  • Related Posts

    यूपी बोर्ड इंप्रूवमेंट परीक्षा 2025, 10 जून तक करें आवेदन

    लखनऊ। 9 जून 2025, शब्दरंग समाचार: उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद (UPMSP) ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट इंप्रूवमेंट व कंपार्टमेंट परीक्षा 2025 के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी है। इच्छुक…

    UP News : उत्तर प्रदेश सरकार और मोनाश विश्वविद्यालय के बीच एमओयू , शिक्षा क्षेत्र में वैश्विक सहयोग की नई पहल

    लखनऊ। 29 मई 2025, शब्दरंग समाचार: उत्तर प्रदेश सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में वैश्विक मानकों को अपनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। ऑस्ट्रेलिया की प्रतिष्ठित मोनाश…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *