शब्दरंग समाचार, दिल्ली, 1 नवंबर
हर साल की तरह इस बार भी दिवाली की खुनकी ने जाड़े का आगाज़ कर दिया है, और इसी के साथ दिल्ली के प्रदूषण स्तर को जहरीला बनाने का सिलसिला शुरू हो गया है। दिल्ली की हवा अब तब तक विषैली बनी रहेगी जब तक कि जाड़े की बरसात नहीं हो जाती। पटाखे जलाने से प्रदूषण बढ़ने का तर्क देते हुए सरकार ने पटाखों पर रोक लगाने का प्रयास किया है।लेकिन क्या सिर्फ दिवाली ही प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है? शायद नहीं। जो प्रदूषण का स्तर अभी है, वह अधिकतम दो-तीन दिनों में खत्म हो सकता है, लेकिन पंजाब और हरियाणा की जलती हुई पराली इसका सारा दोष दिवाली पर मढ़ दिया जायेगा। सच तो यह है कि सरकार पटाखों की दुकानों को सील करने और बिक्री पर रोक लगाने का प्रयास करती है, लेकिन इसके बावजूद दिल्ली में धुआंधार पटाखे चल रहे हैं।फिर वही बात दोहराना चाहूंगा कि पटाखों पर पूरी तरह से रोक लगाना किसी भी सरकार के बस का नहीं है। क्योंकि परंपराओं को रोका नहीं जा सकता। यह जरूर हो सकता है कि कम प्रदूषण वाले पटाखों का इस्तेमाल कर रस्म को पूरा किया जाए, लेकिन इसके लिए समाज को स्वयं आगे आना होगा। यही बात पराली जलाने वाले किसानों पर भी लागू होती है – उन्हें तय करना होगा कि क्या वे हमें भोजन के साथ-साथ जहरीला धुआं भी परोसना चाहते हैं।इस दिवाली सरकार को अपनी ओर से प्रयास करना चाहिए, लेकिन जब तक किसान स्वयं जागरूक नहीं होंगे, तब तक यह समस्या बनी रहेगी। उन्हें यह सोचना पड़ेगा कि जलती है पराली और बदनाम होती है दिवाली।
प्रधान संपादक: राजेश कुमार