पानी का एक ताजा घूँट
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पहली बार घर छोड़कर
जब चला था गांव से शहर
मुझे याद है एक लोटा था मेरे साथ
माँ का दिया हुआ
जिसमें थी एक आत्मिक शान्ति
ठंडे पानी का एक ताजा घूँट
आज तलाशता हूँ ‘डायनिंग टेबल’ पर
वह आत्मिक शान्ति
किसी कोने में नज़र नहीं आती
अब वहाँ रह गयी है निर्जीव झंकार
कांटों, छुरियों और चम्मचों की
और एक खोखली बहस
मन्दिर-मस्जिद की
दलगत हार-जीत की
और विश्वासघाती दावपेंच की
मैंने ठंडे पानी का वह ताजा घूँट
सदा-सदा के लिए खो दिया
@रवि नंदन सिंह