लखनऊ ,(Shabddrang Samachar): जिन्हें “मानव कंप्यूटर” के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी गणितज्ञ थीं जिन्होंने अपनी अद्वितीय गणना क्षमता से पूरी दुनिया को चकित कर दिया। उनका जन्म 4 नवंबर 1929 को बेंगलुरु, कर्नाटक में हुआ था। गरीबी में पले-बढ़े शकुंतला देवी ने अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में ही गणित के प्रति गहरी समझ और असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया। बिना किसी औपचारिक शिक्षा के, उन्होंने अपने दम पर गणित के जटिल प्रश्नों को हल करना सीखा और धीरे-धीरे यह प्रतिभा उनकी पहचान बन गई।
प्रारंभिक जीवन और गणित में रुचि
शकुंतला देवी के पिता एक सर्कस में काम करते थे, और उन्होंने सबसे पहले अपनी बेटी की इस विशेष प्रतिभा को पहचाना। केवल तीन साल की उम्र में उन्होंने ताश के खेल में गणना करना शुरू किया। पांच साल की उम्र में उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर के कठिन गणितीय सवालों के उत्तर देने शुरू कर दिए।
अद्वितीय गणना क्षमता
उनकी गणना करने की क्षमता इतनी तेज थी कि उन्हें “मानव कंप्यूटर” कहा जाने लगा। 1977 में, शकुंतला देवी ने डलास, टेक्सास में एक विश्वविद्यालय में 201 अंकों वाली दो संख्याओं का गुणा कर दिया और केवल 50 सेकंड में सही उत्तर बताया। यह उपलब्धि इतनी अभूतपूर्व थी कि इसे 1982 में गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया।
उन्होंने ऐसी-ऐसी गणनाएँ कीं जो कम्प्यूटर को करने में भी समय लगता था, और उन्होंने इस कार्य को बहुत ही सरलता से, बिना किसी यंत्र की सहायता के किया। यह उनके मस्तिष्क की असाधारण क्षमताओं का प्रमाण है।
साहित्य और अन्य योगदान
गणित के अलावा, शकुंतला देवी ने कई किताबें भी लिखीं। उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग केवल गणितीय प्रश्नों के हल तक सीमित नहीं रखा बल्कि ज्योतिष पर भी किताबें लिखीं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में “फ़न विद नंबर्स” और “पज़ल्स टू पज़ल यू” शामिल हैं। उन्होंने गणित को सरल और मजेदार बनाने के लिए कई कार्य किए और बच्चों में गणित के प्रति रुचि जगाने का प्रयास किया।
समाज में योगदान
शकुंतला देवी ने न केवल अपनी प्रतिभा से दुनिया को हैरान किया बल्कि उन्होंने यह भी दिखाया कि कैसे गणित को आम लोगों के जीवन का हिस्सा बनाया जा सकता है। उन्होंने गणित को जटिल और डरावना विषय समझने वाले लोगों के बीच सरल तरीके से प्रस्तुत किया, जिससे कई लोग गणित के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल सके।
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष
शकुंतला देवी का निजी जीवन संघर्षों से भरा रहा। वे एक प्रखर बुद्धिजीवी थीं लेकिन उनका जीवन सरल नहीं था। उन्होंने अपनी शादी के बारे में खुलकर बात की और अपनी शादीशुदा जिंदगी की कठिनाइयों पर आधारित एक किताब भी लिखी।
विरासत और सम्मान
शकुंतला देवी का नाम हमेशा गणित के क्षेत्र में अमर रहेगा। उनकी गणना करने की असाधारण क्षमता, उनके द्वारा लिखी गई किताबें और गणित के प्रति उनकी सेवा को कभी भुलाया नहीं जा सकता। 21 अप्रैल 2013 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनका योगदान और उनकी यादें आज भी जीवित हैं।
2020 में, उनकी जीवन कथा पर आधारित एक फिल्म बनाई गई जिसमें विद्या बालन ने उनका किरदार निभाया। इस फिल्म ने उनकी जिंदगी के पहलुओं और उनकी उपलब्धियों को लोगों के सामने पेश किया।
शकुंतला देवी ने यह साबित कर दिया कि यदि इंसान के पास अदम्य इच्छा शक्ति और लगन हो, तो वह बिना औपचारिक शिक्षा के भी महान ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है। गणित के क्षेत्र में उनकी भूमिका और योगदान भारत के लिए गर्व का विषय है। उनकी प्रेरणादायक यात्रा और उनकी असाधारण गणना क्षमता ने उन्हें एक जीवित किंवदंती बना दिया है।