तुम नैनों की प्रथम दृष्टि का एकमात्र हो प्यार,
तुम्हीं से है मन का उजियार,
मैं तुममें बहती गंगा हूँ, तुम मेरे हरिद्वार,
तुम्हीं से है मन का उजियार,
भले न ज़िद थी तुमको पाना,किंतु तुम्हें खोने का भय था।
इस दुनियां में अपना मिलना ना ख़ारिज था ना ही
तय था।
ना तुमने सांकल खटकाई ना मैं आई द्वार,
तुम्हीं से है मन का उजियार,
प्रेम तुम्हारा दिल मे भरकर जाने कितने
स्वप्न सजाएं,
मन के जितने वाद्ययंत्र थे तुम सबमें सरगम
बन आये,
तुमसे नज़र मिली तो छनके मन वीणा के तार
तुम्हीं से है मन का उजियार,
कितनी ऋतुएँ आई बुलाने कितने सावन
छूट गए,
एक तुम्हारे न आने से मन के कंगन टूट
गए,
मन का उपवन उम्मीदों से फिर भी है
गुलज़ार
तुम्ही से है मन का उजियार,
मैं तुममें बहती गंगा हूँ तुम मेरे हरिद्वार
तुम्हीं से है मन का उजियार,