शब्दरंग साहित्य में आज पढ़िए आईएएस अधिकारी अखिलेश मिश्रा जी की कविता :
तुम आइ ..
तुम आइ . तुम आइ .
मेरे मन आँगन में छम छम .. तुम आइ
रोज़ सबेरे बाल सुखाने छत पर आ जाते थे
मुझे जताने मीठे स्वर में मधुर भजन गाते थे
शहनाई . शहनाई . मेरे कानों में कह जाती ,
तुम आइ ..
हर गुल हर पत्ते हर बूटे के होंठों पे छाए
दिनभर दिल-दिल भटके शाम को लौटे तो घर आए
हरजाई हरजाई , चाहे कोई कुछ भी कह ले ..
तुम आइ
जब जब जन्म जहां भी लोगे मुझको संग पाओगे
जब जब मुड़ कर देखोगे हौले से मुसकाओगे
परछाईं परछाईं ,, तू मेरी मैं तेरा प्रीतम …
तुम आइ
गीत विरह के तेरे सुर में जब जब मैं गाता हूँ
तेरी ख़ुशबू के आलिंगन में ख़ुद को पाता हूँ
अंगड़ाई .अंगड़ाई .. जब लेती यादों में मेरी …
तुम आइ
Dr Akhilesh kumar Mishra . Ias .2009
उत्तर प्रदेश