श्रीरामचरितमानस को नए दृष्टिकोण से व्याख्यायित करता ग्रंथ “रामचरितमानस की लोकव्यापकता”-रतिभान त्रिपाठी


जाने-माने कवि और लेखक डॉ. रविशंकर पाण्डेय की एक नई पुस्तक “रामचरितमानस की लोकव्यापकता” हाल में ही सेतु प्रकाशन नई दिल्ली से छपकर आई है। चार सौ पृष्ठों की यह पुस्तक जिन संदर्भों में लिखी गई है, उसे ग्रंथ कहना अधिक समीचीन होगा। यह ग्रंथ डॉ. रविशंकर पाण्डेय की व्यापक अध्ययनशीलता का जीवंत प्रमाण है।
“रामचरितमानस की लोकव्यापकता” में लेखक ने यह स्पष्ट करने का सार्थक प्रयास किया है कि श्रीरामचरितमानस के भीतर ऐसी कौन सी विशेषताएं हैं जो उसे इतना लोकप्रिय बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ग्रंथ का अवलोकन करने से यह भी स्पष्ट होता है कि समाज में कोई परिवर्तन केवल उठा-पटक से नहीं बल्कि साहित्य के माध्यम से शांति से ही संभव हो सकता है।
तुलसीदास ने रामचरितमानस को माध्यम बनाकर समाज में जो परिवर्तन लाने की चेष्टा की है, रविशंकर पाण्डेय ने इसकी बड़ी सधी हुई भाषा में मनोवैज्ञानिक और प्रगतिशील भाव से व्याख्या प्रस्तुत ग्रंथ में की है।
सरल, सौम्य और शांत स्वभाव के रविशंकर पाण्डेय चुपचाप साहित्यिक साधना में लीन रहते हैं। वह प्रशासनिक अधिकारी तो थे ही लेकिन इस असंवेदनशील समय में वह एक संवेदनशील और समर्थ कवि भी हैं। वह नवगीतों के अद्भुत चितेरे हैं लेकिन उन्हें अपनी कविताई का न तो कोई दंभ है और न ही उसका शोर मचाते हैं। लोग जब उनकी रचनाएं पढ़ते हैं तब पता चलता है कि रविशंकर पाण्डेय की साहित्यिक भावभूमि कितनी व्यापक है।
जिन दिनों वह “रामचरितमानस की लोकव्यापकता” ग्रंथ का लेखन कर रहे थे, इसके अनेक विषयों-प्रसंगों पर मेरा उनसे निरंतर संवाद होता रहा है। यद्यपि वह मेरे ममेरे भाई हैं लेकिन उनके मेरे पारस्परिक संबंधों का मुख्य आधार रिश्ते से अधिक साहित्यिक-मानसिक साम्य रहा है। वह वनस्पतिविज्ञानी हैं लेकिन शुरू से ही वह साहित्यिक चेतना के अधिक निकट रहे हैं और यही वजह है कि वह अब तक लगभग एक दर्जन साहित्यिक पुस्तकें सृजित कर चुके हैं।
पंद्रह अध्यायों वाला “रामचरितमानस की लोकव्यापकता” नामक उनका ताजा ग्रंथ पढ़ने और हृदयंगम करने योग्य है। इससे श्रीरामचरितमानस के प्रति नई दृष्टि मिलेगी। रविशंकर पाण्डेय ने अपने ग्रंथ में ऐसे-ऐसे मौलिक और शोधपरक तथ्य प्रस्तुत किए हैं, जिनसे यह भी पता चलेगा कि लगभग सौ डेढ़ साल पहले उस समय के अंग्रेज विद्वानों और आईसीएस अफसरों ने श्रीरामचरितमानस को कैसे वैश्विक ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत किया और किन-किन वजहों से आज यह सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ बना हुआ है।
रतीभान त्रिपाठी

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