।। छाया ।।
पृथ्वी अस्तित्व है उसका
ब्रह्माण्ड में विस्तृत धरा पर।
तुम्हें ज़मीन पर
अपना अस्तित्व चाहिए था,और मुझे
उनसे आँखें मिलाकर
कुछ प्रश्नों के उत्तर।
पूछना था कि
कर्ण के पिता आप ही हैं, न?
आप तो देवता हैं,
आपमें भी उन्हें साथ रखने का सामर्थ्य नहीं?
उस दिन के बाद कभी कुन्ती का स्मरण नहीं आया?
रोती हुई कुन्ती के आँसुओं से आपको भय नहीं हुआ?
कुन्ती के कुण्ठित मन को श्राप देने से आपको संकोच नहीं हुआ?
व्यथित हृदय और कर्ण के बाण लगे कलेजे को देखकर
क्या आपकी आत्मा नहीं बिलखी?
पराजित होते हुए कर्ण को देखकर
क्या गले लगाने की इच्छा नहीं जगी?
उनके अंत समय मेंआप सहमे तो अवश्य होंगे?
कुन्ती का मौन
क्या आपके भीतर कोई चीत्कार नहीं कर सका?
उसकी अंतस की वेदना
क्या आपको व्याकुल नहीं कर सकी?
कुन्ती, पुत्र-शोक में जल रही थी,
और आप तब भी मौन रहे।
यह मौन
क्या आपके हृदय को आहत नहीं करता?
आपको पुरुष होने का अनुभव,
आपके पुरुषत्व को कभी धिक्कारा नहीं?
ओह! हाँ,हम भूल ही जाते हैं कि,
आप भी तो पुरुष ही हैं।
आपके भीतर भी
पाषाण हृदय ही तो होगा!
तुम ज़मीन पर
अपना अस्तित्व पाकर सुखी थे,
और मैं,तुमसे उत्तर।