टैरिफ़ के कारण बढ़ रही वैश्विक मंदी की आशंका में क्या भारत अवसर का लाभ उठा सकता है?

Share this News
PM Narendra Modi
PM Narendra Modi

नई दिल्ली, 11 अप्रैल 2025, शब्दरंग समाचार: वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर मंदी की दहलीज पर खड़ी है, और इस बार वजह है दुनिया के बड़े देशों की संरक्षणवादी (Protectionist) व्यापार नीतियां और ऊंचे टैरिफ़। अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी शुल्कों ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में खलबली मचा दी है। इस परिदृश्य में भारत, जो आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार से थोड़ा अलग-थलग रहा है, खुद को एक अनोखी स्थिति में पा रहा है — जहाँ यह संकट उसके लिए एक अवसर बन सकता है।

भारत की स्थिति: संकट में अवसर?

भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी विकास दर अभी भी 6% के आसपास बनी हुई है। हालांकि वैश्विक निर्यात में इसकी हिस्सेदारी सिर्फ दो प्रतिशत से कम है, फिर भी इसकी मजबूत घरेलू माँग ने इसे अब तक मंदी की चपेट में आने से बचाए रखा है।

मुंबई के इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट रिसर्च की प्रोफ़ेसर राजेश्वरी सेनगुप्ता के अनुसार, “भारत का कम एक्सपोज़र यानी वैश्विक व्यापार में कम निर्भरता, इन हालात में फायदेमंद साबित हो रही है।”

उनका मानना है कि अगर निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्थाएं टैरिफ़ के कारण धीमी पड़ती हैं, तो भारत अपने घरेलू बाजार की ताकत से अपेक्षाकृत मज़बूत बना रह सकता है।

लेकिन क्या ये काफी है?

व्यापार विशेषज्ञ और कोलंबिया विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने अपनी किताब ‘India’s Trade Policy: The 1990s and Beyond’ में भारत की व्यापारिक सोच को “जटिल और अस्थिर” बताया है। उनका तर्क है कि भारत ने लंबे समय तक आयात प्रतिस्थापन की नीति अपनाई, जिससे उसने न सिर्फ तकनीकी प्रगति गंवाई बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी पिछड़ गया।

इतिहास गवाह है कि जहां ताइवान, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर जैसे एशियाई देश 1960 के दशक में निर्यात आधारित रणनीतियों को अपनाकर तेज़ी से आगे बढ़े, वहीं भारत ने आयात पर रोक और घरेलू संरक्षण को प्राथमिकता दी। इससे न सिर्फ उपभोक्ता उत्पादों की गुणवत्ता प्रभावित हुई, बल्कि निर्यात भी ठहर गया।

टैरिफ़ और भारत का भविष्य

आज भी भारत के टैरिफ़ वैश्विक मानकों की तुलना में काफी ऊँचे हैं। ऐसे में अगर भारत को इस मौके का लाभ उठाना है, तो उसे व्यापार नीति में संतुलन बनाना होगा — न तो पूरी तरह खुलापन और न ही पूरी तरह संरक्षणवाद।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब धीरे-धीरे और रणनीतिक रूप से व्यापार के लिए दरवाज़े खोलने होंगे, ताकि वह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बन सके और विदेशी निवेश आकर्षित कर सके।

दुनिया के लिए जहाँ टैरिफ़ एक संकट बनते जा रहे हैं, वहीं भारत के लिए यह एक रणनीतिक अवसर बन सकता है — बशर्ते वह अपने पुराने डर और नीतिगत जड़ता से बाहर निकले। आत्मनिर्भरता की भावना अगर उदार व्यापारिक सोच के साथ जोड़ी जाए, तो भारत आने वाले दशक में वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक निर्णायक खिलाड़ी बन सकता है।

  • Related Posts

    जमीअत उलमा-ए-हिंद की कार्यकारी बैठक में वक्फ कानून, यूसीसी और फिलिस्तीन मुद्दे पर पारित हुए प्रस्ताव

    Share this News

    Share this Newsनई दिल्ली, 13 अप्रैल 2025, शब्दरंग समाचार:  जमीअत उलमा-ए-हिंद की केंद्रीय कार्यकारी समिति की अहम बैठक शनिवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित हुई, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों…

    बैसाखी पर प्रधानमंत्री मोदी ने दी शुभकामनाएं, जलियांवाला बाग के शहीदों को किया नमन

    Share this News

    Share this Newsनई दिल्ली। शब्दरंग समाचार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को बैसाखी के पावन अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं दीं और उनके जीवन में खुशहाली, समृद्धि और नई उम्मीदों…

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *