वक्फ़ क़ानून पर विवाद बढ़ा: बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का भड़काऊ बयान, पूर्व चुनाव आयुक्त को बताया ‘मुस्लिम आयुक्त’

सुप्रीम कोर्ट और CJI संजीव खन्ना पर भी लगाए गंभीर आरोप

 

नई दिल्ली, 20 अप्रैल 2025, शब्दरंग समाचार:

वक्फ़ क़ानून को लेकर देश में जारी बहस के बीच बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक बार फिर विवादास्पद बयान देकर सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। उन्होंने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी को ‘मुस्लिम आयुक्त’ करार देते हुए उनके कार्यकाल पर सवाल उठाए हैं।

एक्स (पूर्व ट्विटर) पर दिया बयान

निशिकांत दुबे ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर लिखा:

“आप चुनाव आयुक्त नहीं, मुस्लिम आयुक्त थे। झारखंड के संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों को वोटर सबसे ज़्यादा आपके कार्यकाल में ही बनाया गया।”

उन्होंने आगे लिखा,

“पैग़ंबर मुहम्मद साहब का इस्लाम भारत में 712 में आया। इसके पहले तो यह ज़मीन हिंदुओं या आदिवासी, जैन, बौद्ध आस्थाओं से जुड़ी थी। मेरे गांव विक्रमशिला को बख्तियार खिलजी ने 1189 में जलाया। यह देश जोड़े, इतिहास पढ़े — तोड़ने से पाकिस्तान बना। अब बंटवारा नहीं होगा।”

पृष्ठभूमि क्या है?

यह बयान उस समय आया जब एसवाई क़ुरैशी ने वक्फ़ क़ानून पर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा था कि,

“यह कानून मुस्लिम समुदाय की ज़मीनों पर कब्जे की एक खुली और दुर्भावनापूर्ण योजना है। मुझे विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट इसे ज़रूर संज्ञान में लेगा।”

सुप्रीम कोर्ट पर भी हमला

निशिकांत दुबे ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर भी निशाना साधा था। उन्होंने कहा था:

“देश में जितने गृह युद्ध हो रहे हैं, उसके ज़िम्मेदार केवल चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया संजीव खन्ना हैं। सुप्रीम कोर्ट अगर हर बात में दखल देगा, तो संसद और विधानसभा का कोई औचित्य नहीं रहेगा। इन्हें बंद कर देना चाहिए।”

राजनीतिक और संवैधानिक प्रतिक्रिया का इंतज़ार

निशिकांत दुबे के इस बयान पर अब तक बीजेपी नेतृत्व या सरकार की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उनके वक्तव्यों को संवैधानिक पदों और न्यायपालिका की गरिमा के उल्लंघन के रूप में देखा जा रहा है।

क्या है विवाद का मूल?

वक्फ़ कानून में संशोधन और उसकी वैधता को लेकर मुस्लिम समुदाय, सामाजिक कार्यकर्ता और कुछ पूर्व अधिकारी सवाल उठा रहे हैं। वहीं बीजेपी और उससे जुड़े नेता इसे “ऐतिहासिक सुधार” और “धार्मिक तुष्टिकरण के खिलाफ कार्रवाई” करार दे रहे हैं।

निशिकांत दुबे के बयान ने एक संवेदनशील मुद्दे को और अधिक जटिल बना दिया है। अब यह देखना अहम होगा कि चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट या केंद्र सरकार इस विवादास्पद टिप्पणी पर क्या रुख अपनाते हैं। विपक्ष की ओर से तीखी प्रतिक्रिया और संसद में यह मुद्दा उठना तय माना जा रहा है।

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