युद्धविराम—एक विवेकपूर्ण निर्णय, शब्दरंग समाचार:
हाल ही में भारत-पाकिस्तान युद्ध के अप्रत्याशित और तीव्र घटनाक्रमों ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया। प्रारंभ में पाकिस्तान की ओर से हल्के मिसाइल आक्रमण हो रहे थे, जिन्हें भारतीय सुरक्षा तंत्र ने प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया। परंतु जैसे ही भारत ने ब्रह्मोस जैसे उन्नत मिसाइलों का प्रयोग करना शुरू किया और पाकिस्तान के प्रमुख सैन्य अड्डों पर निशाना साधा, हालात तेजी से गंभीर होते चले गए।
इस क्रम में नूर खान एयरबेस पर हुआ हमला निर्णायक मोड़ साबित हुआ। इस एयरबेस पर परमाणु हथियारों का भंडार मौजूद था, जो हमले के दौरान क्षतिग्रस्त हुआ और रेडिएशन का रिसाव प्रारंभ हो गया। विश्व समुदाय ने इस खतरे को तुरंत भांपते हुए कार्रवाई की। अंतरराष्ट्रीय निगरानी एजेंसियों द्वारा रेडिएशन नियंत्रण हेतु विमानों से विशेष गैस का छिड़काव किया गया, जो आंशिक रूप से सफल रहा।
इस खतरनाक स्थिति को देखते हुए अमेरिका को हस्तक्षेप करना पड़ा। परमाणु युद्ध की आशंका ने सबको झकझोर कर रख दिया था। भारत, जो स्वयं परमाणु हमले का इच्छुक नहीं था, इस स्थिति को समझते हुए दो घंटे के भीतर युद्धविराम पर सहमत हो गया। यह निर्णय केवल सामरिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि मानवीय और वैश्विक शांति की दृष्टि से भी अत्यंत विवेकपूर्ण था।
इस युद्धविराम की आलोचना करना नासमझी होगी। इसके विपरीत, हमें यह स्वीकार करना होगा कि भारत की सैन्य शक्ति इतनी सक्षम है कि वह बिना परमाणु हथियार का प्रयोग किए, शत्रु की रणनीतिक क्षमताओं को निष्क्रिय कर सकता है। यह भविष्य के लिए एक सशक्त संदेश है।
इस समय आवश्यकता है आत्ममंथन की—न केवल युद्ध नीति पर, बल्कि वैश्विक सहयोग और शांति स्थापना पर भी। युद्धविराम कोई कमजोरी नहीं, बल्कि विवेक और शक्ति के संतुलन की प्रतीक है। भारत का यह कदम न केवल दक्षिण एशिया बल्कि पूरे विश्व के लिए शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
कात्यायनी सिंह