
नई दिल्ली।11जून 2025, शब्दरंग समाचार:
सुप्रीम कोर्ट ने एक पूर्व न्यायिक अधिकारी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने खुद पर लगे नाबालिग बेटी के यौन शोषण के आरोपों के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। कोर्ट ने इसे “हैरान करने वाला और गंभीर मामला” करार दिया।
मामले की पृष्ठभूमि: FIR, वर्ष 2019 में भंडारा (महाराष्ट्र) में हुई थी दर्ज
यह मामला महाराष्ट्र के भंडारा जिले से जुड़ा है, जहां 21 जनवरी 2019 को एफआईआर दर्ज की गई थी। आरोप है कि यौन शोषण की घटनाएं मई 2014 से 2018 के बीच घटित हुईं, जब बेटी नाबालिग थी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: “यह चौंकाने वाला है”
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने साफ कहा कि: “बेटी आरोप लगा रही है, वह एक न्यायिक अधिकारी हैं, यह दुराचार का गंभीर आरोप है। यह कैसे रद्द हो सकता है?”
कोर्ट ने यह भी कहा कि बेटी को जीवनभर के लिए मानसिक आघात पहुंचा होगा।
हाई कोर्ट का आदेश बरकरार, ट्रायल कोर्ट की प्रक्रिया सही
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को भी बरकरार रखा जिसमें ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोप तय करने की प्रक्रिया को उचित माना गया था। हाई कोर्ट का यह आदेश 15 अप्रैल 2025 को आया था।
पूर्व जज का पक्ष: वैवाहिक विवाद और झूठे आरोपों का दावा
पूर्व जज के वकील ने दलील दी कि:
- उनकी पत्नी उनसे वर्षों से अलग रह रही हैं।
- वैवाहिक विवाद और बच्ची की कस्टडी को लेकर मामला लंबित है।
- उनके पिता ने आत्महत्या कर ली, और बाद में यह आरोप लगाया गया।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा: “हम आत्महत्या जैसे मुद्दों में नहीं पड़ना चाहते। यह बेटे (पूर्व जज) के कृत्यों के कारण हो सकता है।”
FIR रद्द करने की याचिका क्यों खारिज हुई?
पीठ ने माना कि आरोप अत्यंत गंभीर हैं और आरोपी पर POCSO Act और IPC धारा 354 के तहत केस दर्ज है। कोर्ट ने पाया कि:
- आरोपपत्र दाखिल हो चुका है
- आरोपों में प्रथम दृष्टया दम है
- FIR में देरी का कोई वैध कारण सामने नहीं आया
आरोपित धाराएं
- IPC धारा 354 – महिला की गरिमा पर हमला
- POCSO धारा 7, 8, 9 (एल), 9 (एन), 10 – नाबालिग से यौन उत्पीड़न व गंभीर दुर्व्यवहार