शब्दरंग साहित्य में पढ़िए अरुण धर्मावत की कविता,”एक पहेली ज़िन्दगी”

एक पहेली ज़िन्दगी”
~~
संबंधों के रंगमंच पे
नृत्य करती ज़िन्दगी
कभी ये हंसती गाती है
कभी ये रोती ज़िन्दगी

रिश्तों की बुनियादें धूमिल
कुछ धूमिल धूमिल रिश्ते हैं
आते जाते रंग बदलती
सांझ सवेरे ज़िन्दगी

संबंधों के रंगमंच पे
नृत्य करती ज़िन्दगी …

कुछ दीप्त उजाले लगते हैं
कुछ मीत सुहाने लगते हैं
कुछ कोरे कोरे पन्नों पर
हर्फ़ अजाने लगते हैं

संगम की लहरों सी बहती
कल कल छल छल ज़िन्दगी
संबंधों के रंगमंच पे
नृत्य करती ज़िन्दगी…..

कुछ अश्कों की करुणा में डूबी
कुछ कंटक क्रंदन उत्पीड़ित
कुछ नर्म ओस की बूंदों सी
कुछ पाषाणों सी कुंठित भी

नित नित ढलती, नित नित छलती
रूप बदलती ज़िन्दगी
जीवन जीते कोई न समझे
एक पहेली ज़िन्दगी

संबंधों के रंगमंच पे
नृत्य करती ज़िन्दगी …..!


….”अरुण धर्मावत”

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