ठाकुर प्रसाद सिंह की जन्म सदी के अवसर पर साहित्य अकादमी द्वारा भव्य कार्यक्रम

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शब्दरंग समाचार।नई दिल्ली।

साहित्य अकादेमी द्वारा आज प्रसिद्ध गीतकार एवं लेखक ठाकुर प्रसाद सिंह की जन्म शत वार्षिकी के अवसर पर “साहित्य मंच” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में विभिन्न वक्ताओं द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से चर्चा की गई। अध्यक्षता सुप्रसिद्ध गीतकार राजेंद्र गौतम ने की और राधेश्याम बंधु, जगदीश व्योम एवं रमा सिंह ने अपने-अपने आलेख प्रस्तुत किए। राजेंद्र गौतम ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि उनके गीत अनुभवजनित भाषा के परिचायक हैं और अमूल्य हैं। उनके गीतों में रंगो से जुड़े विशलेषणों की बहुलता हम सबको आश्चर्यचकित करती है। उनके गीतों में सांस्कृतिक संदर्भ के साथ ही उनपर मंडरा रहे संकटों की बात भी है। कभी कभी तो लगता है जैसे उनके गीत अनाम, अज्ञात संथाल युवती के स्वकथन और संवाद है।
जगदीश व्योम ने अपने वक्तव्य में जोकि उनके संग्रह “वंशी और माँदल” पर केंद्रित था में कहा कि उनके गीतों में लोकजीवन की सकारात्मकता को महसूस किया जा सकता है।

उन्होंने उनके गीतों में संथाल और मुंडा जनजातियों के परिवेश के प्रभाव को भी रेखांकित किया। आगे उन्होंने कहा कि उनके गीतों में समूचे लोक के साथ ही एक व्यापक दृष्टिकोण भी है जो आदिवासी जीवन की संवेदना को सहजता से पकड़ता है। राधेश्याम बंधु ने ठाकुर प्रसाद सिंह के संपूर्ण व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी कविताओं में आदिवासी जीवन के अभावों के त्रासद सत्य को समाहित किया गया है।
उन्होंने अज्ञेय के हवाले से ठाकुर प्रसाद सिंह के गीतों की उत्कृष्टता का उदाहरण भी दिया। रमासिंह ने अपना वक्तव्य ठाकुर प्रसाद सिंह के प्रबंध काव्य महामानव पर केंद्रित करते हुए कहा कि 21 वर्ष की अवस्था में उनके द्वारा महात्मा गाँधी पर लिखा यह प्रबंध-काव्य अपनी सरल और सहज भाषा में गाँधीजी के समूचे जीवन और उनके संघर्षों को प्रस्तुत करता है। उन्होंने ठाकुर प्रसाद सिंह के काव्य संग्रह हारी हुई लड़ाई लड़ते हुए पर भी अपना पक्ष रखते हुए कहा इस संग्रह की कविताएँ इतिहास, पुराण के साथ ही मानवीय संबंधों की शब्द-चित्र जैसी कविताएँ हैं।

कार्यक्रम का संचालन कर रहे अकादेमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने उनके उपन्यासों कुब्जा सुंदरी एवं सात घरों का गाँव के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी की और बताया कि उनके ये उपन्यास आदिवासी समुदायों के जीवन का आख्यान हैं।

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