
वाराणसी, (Shabddrang Samachar): जिसे काशी और बाबा विश्वनाथ की नगरी के नाम से भी जाना जाता है, भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। काशी न केवल अपने मंदिरों और घाटों के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां की जीवंत परंपराओं और अनोखे त्योहारों के लिए भी जानी जाती है। इन्हीं अद्वितीय परंपराओं में से एक है “नाग नथैया लीला”। यह पर्व भगवान कृष्ण की लीला का प्रतीक है, जिसमें उन्होंने यमुना नदी में नाग (सर्प) कालिया पर विजय प्राप्त की थी।
नाग नथैया लीला का महत्व
नाग नथैया लीला वाराणसी के तुलसी घाट पर हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु और दर्शक यहां इकट्ठा होते हैं और कृष्ण की इस दिव्य लीला का दर्शन करते हैं। इस पर्व का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यधिक है। नाग नथैया लीला में भगवान कृष्ण के कालिया नाग पर विजय प्राप्त करने की घटना का मंचन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। यह त्योहार भक्तों के लिए एक प्रेरणा है, जो उन्हें बताता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और साहस का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
लीला का आयोजन और विशेषता
तुलसी घाट पर इस लीला का आयोजन बड़े ही भव्य रूप से किया जाता है। इस आयोजन में एक बच्चे को भगवान कृष्ण के रूप में सजाया जाता है, जो कालिया नाग के प्रतीक मंच पर अपनी विजय की लीला को प्रदर्शित करता है। जैसे ही “कृष्ण” कालिया नाग पर खड़े होते हैं, घाट पर उपस्थित जनसमूह मंत्रोच्चार और जयकारों से वातावरण को गूंजायमान कर देता है।यह आयोजन काशी के सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत उदाहरण है। यहां स्थानीय निवासी, श्रद्धालु, संत और पर्यटक सभी इस आयोजन में शामिल होते हैं। नगर के लोग इस पर्व को एक त्यौहार की तरह मनाते हैं, और यह दिन पूरे वाराणसी के लिए अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण होता है।
नाग नथैया लीला की प्राचीनता
नाग नथैया लीला की परंपरा कई सदियों से चलती आ रही है। यह पर्व काशी की सांस्कृतिक जड़ों को और भी मजबूत बनाता है और दर्शकों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। तुलसीदास के समय से शुरू हुई यह परंपरा आज भी काशी में पूरे हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है, जो वाराणसी की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत बनाए रखने में सहायक है।
इस पर्व का सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
नाग नथैया लीला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह वाराणसी की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को एक सूत्र में बांधता है। इस आयोजन से काशीवासियों के बीच एकता, समर्पण और धर्म के प्रति आस्था का भाव उत्पन्न होता है।
नाग नथैया लीला वाराणसी की उन विशेष परंपराओं में से एक है जो प्राचीन काल से चली आ रही हैं और समय के साथ और भी प्रासंगिक होती जा रही हैं। यह पर्व केवल भगवान कृष्ण की लीलाओं को याद करने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह इस नगरी की धरोहर, भक्ति और प्रेम का प्रतीक है। वाराणसी के तुलसी घाट पर मनाया जाने वाला यह पर्व हर साल लोगों के मन में आध्यात्मिकता और उत्साह का संचार करता है।
लेखिका : नीतु महादेव