भले पुराना सही लाख पैरहन मेरा।
ख़ुदा का शुक्र है नंगा नही बदन मेरा।
तबाह वक़्त के हाथों हुआ हूँ मैं वरना,
कभी मिसाल था यारों रहन -सहन मेरा।
उसी को तर्क ए तअल्लुक की जल्दबाज़ी थी,
किसी को छोड़ दूँ वरना नही चलन मेरा।
छुड़ा के बीच सफर में वो हाथ यूँ बोले ,
अब और आगे सफर का नहीं है मन मेरा।
तुम्ही बताओ के कैसे मैं बेचता यारो,
मेरा ज़मीर ही सबसे बड़ा था धन मेरा।
ख़िताब ए बज़्म वो करते हैं शे’र से मेरे,
किसी के काम तो आया सुखन का फ़न मेरा।
तड़प के लाश पे बोली शहीद की बीबी,
अमर शहीद है तो सुर्ख हो कफन मेरा।
तर्क ए तअल्लुक—संबंध विच्छेद
ख़िताब ए बज़्म– महफिल को संबोधन
सुख़न का फन–गजल गोई,गजल कहने की कला
सत्या सिंह.
लखनऊ