
नई दिल्ली।17 मई 2025, शब्दरंग समाचार:
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का पक्ष रखने के लिए सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल गठित किए हैं। इन्हीं में से एक प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई के लिए कांग्रेस सांसद शशि थरूर को चुना गया है। इस चयन को लेकर कांग्रेस के भीतर ही विवाद खड़ा हो गया है।
जयराम रमेश का बयान: ‘कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना अलग बात है’
कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने शशि थरूर का नाम लिए बिना तीखा तंज कसते हुए कहा, “कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना, दोनों में फर्क है। कांग्रेस एक विशाल गंगा है, जिसमें कई सहायक नदियां हैं। कुछ सूख जाती हैं, कुछ प्रदूषित हो जाती हैं।”
इस बयान से यह स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि पार्टी थरूर के चयन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है, क्योंकि उनके नाम की सिफारिश पार्टी नेतृत्व की अनुमति के बिना केंद्र सरकार द्वारा की गई।
प्रतिनिधिमंडल में नाम शामिल करने पर क्या है विवाद?
सरकार ने जब प्रतिनिधिमंडल के लिए कांग्रेस से चार नाम मांगे, तब शशि थरूर का नाम उस सूची में शामिल नहीं था।
* केंद्र सरकार ने थरूर का नाम स्वतः जोड़ा
* कांग्रेस का कहना है कि ऐसा करना लोकतांत्रिक परंपराओं के खिलाफ है
* पार्टी नेतृत्व ने स्पष्ट किया कि नामों में कोई परिवर्तन नहीं होगा
थरूर का जवाब: ‘राष्ट्रीय हित में हमेशा तत्पर’
शशि थरूर ने इस पूरे घटनाक्रम को बहुत संयमित अंदाज में लिया। उन्होंने X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा:
“भारत सरकार के निमंत्रण से सम्मानित महसूस कर रहा हूं। जब देश को मेरी जरूरत होगी, मैं हमेशा आगे रहूंगा। जय हिंद!”
उनका यह जवाब पार्टी के भीतर मतभेदों के बावजूद राष्ट्रहित को प्राथमिकता देने की छवि पेश करता है।
भाजपा और केंद्र का रुख
भाजपा ने भी कांग्रेस की ओर से भेजे गए नामों पर सवाल उठाए और कहा:
“क्या कांग्रेस ने थरूर को इसलिए नहीं चुना क्योंकि वे पार्टी आलाकमान से बेहतर हैं?”
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रतिनिधिमंडलों की सूची साझा करते हुए कहा कि यह कदम राष्ट्रीय एकता का संदेश है और इसमें सभी दलों को सहयोग देना चाहिए।
कांग्रेस का पक्ष और संभावित परिणाम
जयराम रमेश का बयान यह स्पष्ट करता है कि कांग्रेस नेतृत्व अपने नियंत्रण से बाहर जाकर लिए गए किसी भी निर्णय को मान्यता नहीं देता।
यह विवाद पार्टी के अंदर नेतृत्व और विचारधारा के मतभेदों को उजागर करता है
यह भी सवाल उठता है कि शशि थरूर पार्टी के भीतर कितने स्वीकार्य हैं
क्या थरूर की बढ़ती स्वतंत्रता भविष्य में उनके राजनीतिक रुख को बदलेगी?